अक्सर मुझे कई चीजें बहुत देर से मिलती हैं
कविता, किताब,कहानी या फिर कोई अच्छा इंसान...
जब मैं दूसरों से कहता हूं तुमने वो कविता पढ़ी क्या?
फलां किताब बहुत अच्छी है, वो इंसान तो बहुत ही अच्छा है
सुनकर हँसने लगते हैं लोग खिलखिलाते हुए कहने की कोशिश में.. तुझे अब पता चला है?
तब थोड़ा सहम जाता हूँ मैं और उदास हो जाता हूं अपनी रफ़्तार पर।
फिर मैं हँसने लगता हूं उन हंसने वालों
पर, थोड़ा गुस्सा भी।
कितने स्वार्थी हो तुम
जब बिकती है कोई किताब या चर्चा में होती है कोई कविता
तब तुम सब उसे पढ़कर छोड़ देते हो दराजों में, अकेला हो जाता होगा वो इंसान जो भीड़ से घिरा रहता होता था हर वक़्त
और जब वो हो जाते हैं एकदम अकेले तब
मैं पहुंचता हूं उन दराजों तक
जमी हुई गर्द झाड़ता हूँ
बीच में लगे बुक मार्क लगा देता हूं पहले पन्ने पर
तब मुस्कुरा जाती हैं किताबें, कविताएं और वो इंसान
अक्सर...
Madhav
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