एक नदी
बहती कल-कल
घाटों पर रुके हुए लोग
देखते उसकी निश्छलता, उसका वेग
अब नदी है नाला
आदत नहीं छोड़ी नदी ने
बह रहा है फिर भी कल-कल
लेकिन घाटों पर नहीं हैं लोग
कौन देखे उसकी निश्छलता, उसका वेग
ये नदी नहीं, हमारी पीढ़ी की है त्रासदी
एक नदी...बहती थी जो कल-कल
No comments:
Post a Comment