Sunday 25 March 2018

हे! राम, कितने राम


चलो राम जी

उनका नाम घमंडी था लेकिन स्वभाव ऐसा कि बोलें तो दिल पसीज कर फाहा बन जाए। माथे से पीला चंदन कभी मिटा हुआ नहीं देखा मैंने। सुबह गायों को हांकते हुए भी उन्हें कहते थे, चलो राम जी...

 बॉक्स वाले राम

पीले रंग के बड़े से कागज में कई छोटे-छोटे बॉक्स बने हैं। गर्मियों की छटि्टयों में उन बॉक्सेज को राम नाम से भरने की प्रतियोगिता हो रही है। कई सालों से बुजुर्ग अपने राम इन बच्चों के नाम करते आ रहे हैं। ये बच्चों के राम हैं।

 राम-राम मास्टर


मेरा दोस्त है फिरोज, उसके दादा हैं मुश्तू। अपनी बकरियां चराने घर से सामने होते हुए ही निकलते हैं, आधे घंटे पहले ही बकरियां दरवाजे पर आकर खड़ी हो जाती हैं। जब खुद आते हैं तो बिना राम-राम मास्टर कहे निकल नहीं पाते। उनकी बकरियां भी उनसे पहले आकर बोलती हैं, राम-राम मास्टर।

 राम-राम नहीं ली

उन्होंने पास से गुजरते हुए उन्हें राम-राम कहा। वह सुन नहीं पाए और आगे बढ़ गए। कुछ दिन बाद घर में कुछ लोगों का खाना-पीना हुआ और वह नहीं आए। क्योंकि उस दिन उन्होंने उनकी राम-राम नहीं ली थी।

गुस्से वाले राम

घर में एक संदूक है जो तब खुले में रखा था। बाबरी वाला साल याद नहीं लेकिन कई साल बाद भी संदूक पर गुस्से में तीर ताने राम थे।  जो बच्चे देखें तो डर ही जाएं।

 छप्पर वाले राम

मंदिर ट्रक में बैठा हुआ है और राम तिरपाल के नीचे। तेज शोर है हिंदूओं को जगाने का। अगर वही असली राम हैं तो ऊपर वाले राम कौनसे राम हैं, किसके राम हैं?




No comments:

Post a Comment