Monday 27 July 2015

कलाम मेरी यादों में...

लग रहा है जैसे वो कल का ही दिन था। जयपुर साहित्य सम्मलेन का दूसरा या तीसरा दिन था। रोज की तरह वहां पहुंचा तो भीड़ देखकर लगा लौट जाऊं पर दिल नहीं माना, प्रेस से होने का थोड़ा फायदा मिला और मैं और लोगों से जल्दी अलग लाइन से अंदर पहुँच गया। फ्रंट लॉन खचाखच भरा हुआ था। 82 साल के एक युवा को सुनने। 1 घंटे पहले ही लोग आ-आकर जमा हो गए थे।
95% लोग मेरी उम्र के दिख रहे थे। मैंने आगे पहुंचने की बहुत कोशिश की पर यहां सफल नहीं हो सका। भीड़ के बीच में पहुंच गया पर मंच दिख ही नहीं रहा था। मुश्किल से बाहर निकला और फिर पीछे खड़ा हो गया। अभी तक मंच खाली था और मैं एक अदद जगह की तलाश में।
तभी लॉन तालियों से गूंज उठा। 40-50 सेकंड तक तालियां बजती रहीं। आप आए लोग खुद ही चुप हो गए, भीड़ अपने आप ही अनुशासित हो गई जो थोड़ी देर पहले एक-दूसरे पर चढ़-मर रहे थे। जो जहां था वहीँ खड़ा रहा। पता चला होटल डिग्गी पैलेस के बाहर स्क्रीन्स लगाई गई थीं। सड़क पर ट्रैफिक रुका हुआ था या शायद पुलिस ने जाम के चलते बंद कर दिया था। हां पर सड़क से होटल के बीच रास्ते में पैर रखने को जगह नहीं थी। सब जैसे थे वैसे ही खड़े रह गए क्योंकि आप स्टेज पर आ गए थे।
माय डिअर फ्रेंड्स से अपने शुरू किया था और फिर  बोलते रहे। मेरे जैसे हज़ारों-हज़ार आपको सुनते रहे। बस सुनाई दे रहा था तो वी लव यू और तालियों की गड़गड़ाहट। आपकी लिखी किताबें सैकड़ों लड़के-लड़कियों के हाथों में रखी हुई थीं। मेरे आस-पास वाले बुदबुदा रहे थे, मिस्टर कलाम सच अ रियल मैन। इस ऐज में कहां से लाते हैं इतनी एनर्जी,इतना स्टेमिना? तभी आपने कहा (अगर मैं सही समझा तो) यूथ से मैं बहुत सीखता हूं और वो मुझे ताकत देते हैं। पूरा फ्रंट लॉन तालियों से गूंजता ही रहा।
आप लगातार बोलते जा रहे थे और हम सुने जा रहे थे। आपकी एनर्जी और लोगों को देख लग रहा था मानो कोई 20-25 साल का लड़का मंच पर हम सब में लगातार खाली हो रही किसी जगह को भर रहा हो। एक बाप अपने बच्चे को कंधे खड़ा कर पूछ रहा था,दिखे? हां पापा। यही हैं कलाम, बहुत बड़े साइंटिस्ट और प्रेसिडेंट भी।आपने बोलना बंद किया और हाथ हिलाते हुए नीचे उतरे। लोग आगे की तरफ भागने लगे अपने रियल हीरो के लिए।
मैं खुद को किस्मत वाला समझता हूं कि आपको सुनने का मौका मिला। हालांकि एक सपना अब कभी पूरा नहीं हो सकेगा पर अब उसका दुख बिलकुल नहीं है। आप अपने परिवार में 65% युवाओं को छोड़कर गए हैं। हमने 83 साल का एक जवान और ऊर्जा से भरा इंसान खोया है। लेकिन मेरे लिए आप मरे नहीं हैं बल्कि ज़िंदा हुए हैं फिर से उन तालियों की गड़गड़ाहट में, उन सभी हज़ारों लोगों में बिलकुल उसी अनुशासन में, उन हाथों में लगी आपकी किताबों में, स्क्रीन्स से चिपकी हज़ारों आंखों मेंऔर कंधे पर बैठे उस मासूम में। आपका दिया हुआ बहुत कुछ रह गया है हमारे पास जिसे सहेजने और आत्मसात करने की जरूरत है। आप मेरे बचपन में भी थे, आज के बचपन में भी हैं और मेरे बच्चों के बचपन में भी रहेंगे।

नमन