Sunday 10 January 2021

जीजी चली गई...

जीजी (दादी) को गए पूरे 2 महीने हो गए इस 10 को। जाने के बाद ना जाने क्यों हर रोज जाने वाले की याद आती है। उसके साथ बिताया कोई भी पल बिना किसी रोक-टोक के वक़्त- बेवक़्त आपकी यादों के रोशनदान में आकर बैठ जाता है। फिर उसी रोशनदान में जाने वाला बैठा रहता है और हम एक हल्की सी मुस्कुराहट के साथ उसके जाने को नियति मान अपने कामों में बिजी हो जाते हैं। वो हमें वहीं बैठे हुए लगातार देखता रहता है और हम पलकों के ऊपर हाथ लगाकर उसे।

सितम्बर की 12 तारीख की सुबह थी। घर से फ़ोन आया, जीजी को अटैक आया है। घर वाले घर पर रहते थे, हमारी जीजी जयपुर में अपने घर पर रहती थी। 72 की उम्र में उसने तय किया कि अब जयपुर रहेगी वो भी अपने घर में। ONE BHK फ्लैट साल भर पहले ही खरीद लिया था। lockdown ख़त्म हुआ ही था, टैक्सी ली और वापस जयपुर आ बसी। आने से पहले सब से मिलकर आई और आखिरी बार मिलने के बात किसी से कहना नहीं भूली।
मैं हॉस्पिटल पहुंचा वो होश में थी। पता चला अटैक नहीं है, ब्रेन हेमरेज हुआ है। सुबह पूजा करते वक़्त गिर गई। उसने मेरा हाथ पकड़ा और कहा, तेरे बाबा की पास जा रही हूं।
दूसरे बड़े अस्पताल में ले गया। गांव के ही न्यूरो सर्जन डॉक्टर ने 'पैसा बनाने' के मकसद से ऑपरेशन कर दिया। 10 दिन बाद उसे हल्का सा होश आया। लगा बाबा के पास जाकर वापस लौट आई है। कुछ दिन रिकवरी अच्छी रही, लेकिन पूरी तरह होश कभी नहीं आया। अस्पताल में जब भी उसे होश आता, पास में अक्सर मैं ही दिखता। रात में तो लगभग हर रोज।
ज़िंदा और ठीक रहते इतनी बार उसने कभी मेरे सिर पर हाथ नहीं फेरा जितना अस्पताल के बिस्तर से। हाथ ऐसे पकड़ती थी जैसे तुरंत पैदा हुआ बच्चा आपकी उंगली पकड़ लेता है एकदम कस कर। बाथरूम की तरफ इशारा करती और 2 उंगली खड़ी करती थी। फिर थककर उसका हाथ बेड पर गिर जाता। साथ में गिरता था आंख की कोर से एक आंसू।
लगभग 45-47 की उम्र में विधवा हो गई थी जीजी। पेंशन मिलती थी। भारत का कोई भी तीर्थ उसने घूमे बिना नहीं छोड़ा था। कपड़े का एक बैग और उसमें एक छोटा सा ताला लगाकर अकेली ही निकल पड़ती थी। हम बच्चे उस पर खूब हंसते थे कि कपड़े के बैग में ताले का फायदा क्या है? लेकिन ये हमारे बूढ़ों का सहज सरल भाव है। वृंदावन दूसरा घर था उसका।
परिवार अपनी सामाजिक व्यवस्था और तौर-तरीकों के अनुसार हर बार उसे रोकता। जब से थोड़ी समझ बनी मैंने उसे रोकना-टोकना अपने परिवार से छुड़वा ही दिया।
क्यों कि मुझे समझ आ गया कि बुढ़ापे में किसी को आदत को नहीं बदला जा सकता। उसे भी अपनी मर्ज़ी की ज़िंदगी जीने की आज़ादी है। बिना किसी के दवाब में आये उसे जो करना है वो करती है। जहां भी जाना था वो बिना किसी से पूछे निकल पड़ती थी।
मुझे लगता है गांव में वो अपनी उम्र की इकलौती औरत थी जिसका बैग हमेशा कहीं जाने के लिए तैयार रखा रहता था और उससे कोई सवाल करने वाला नहीं था।
अच्छे खाने की बेहद शौकीन। घी में तल हलवा उसे पसंद था। हम लोग 5 किलो घी लाते हैं वो 15 लीटर का पीपा खरीदती थी।
शायद उसका खाया ही डेढ़ महीने अस्पताल में काम आया।
ये लिख रहा हूं तब वो मेरे सामने बैठी है। उसका मुंहफट होना! अहा!
मोक्ष पाने के लिए एक बार मौन पर थी बहुत साल पहले। कोई पड़ोसन आई और किसी दूसरी पड़ोसन का उसके बारे में कहा सुना दिया। जीजी ने पहले अपने दिल पर हाथ रखा, फिर पेट पर और इसके बाद अपनी दोनों हथेलियां मिलाकर पीस दीं। मतलब जो मेरा दिल दुखायेगा उसका जड़-मूल से सत्यानाश हो जाएगा।
अस्पताल में उसे होश में लाने के लिए ऐसे ना जाने कितने ही किस्से हमने उसे सुनाए। उसके फ़ोन में फेवरेट भजन हेडफ़ोन लगाकर सुनाते रहते।
उसने सुना सब, लेकिन जवाब किसी बात का नहीं दिया। मुंहफट जीजी सिर्फ आंखों से बात करती थी क्योंकि गले में tracheostomy tube लगी थी। घी में तल हलवा की शौकीन 2 ML दाल का पानी पी रही थी।
डेढ़ महीने अस्पताल में पैसा सूतने के बाद डॉक्टर ने कमरे में ले जाकर हाथ जोड़ दिये। कहा, बाहर (गांव) में जाकर किसी से कुछ मत कहना।
करीब महीने भर घर रही। चचेरे भाई ने ज़िंदा रखने की खूब कोशिश की।
10 नवंबर 2020 की सुबह उसकी पुतलियां फैल गई। एक खूबसूरत औरत का अपने पति से 25 साल का बिछुड़न खत्म हुआ। 12 सितंबर को उसका आखिरी वाक्य भी यही था, तेरे बाबा के पास जा रही हूं और वो चली गई...
चंदन और फूलों में लिपटा उसका शरीर इससे पहले कभी इतना सुंदर नहीं लगा था मुझे जितना उस रोज लगा था।
ज़िंदा रहते वो कहा करती थी, जब मैं मरूँ तो मुझे खूब सेंट से नहाना। उसकी एक इच्छा थी हेलीकॉप्टर में बैठने की। ज़िंदा नहीं बैठ पाई लेकिन सचिन ने उसकी अस्थियों को हवाई जहाज में जरूर बिठाया। वो गंगा में विलीन होकर ना जाने कहां घूमने निकल गई, लेकिन मुझे अब भी रोशनदान में बैठी दिख रही है....