Friday 19 May 2017

अमित नायर, संतोष की हत्या और शातिर राजनीतिक चुप्पी!

अमित के सीने में लगी गोलियां हमारी संवेदनाओं पर लगी गोली भी है। कुछ बची हैं तो वो ट्विटर के हैशटैग पर सिमट कर आ गई हैं। किसी ने खबर पढ़ कर समाज को गरिया लिया, किसी ने मां-बाप को।
बाप का नाम जीवनराम है, जिसके इशारे पर चली 4 गोलियों ने बेटी ममता के जीवन का सच खत्म कर दिया। बंदूक से निकली गोलियां अमित के सीने, गर्दन और पैरों में ही नहीं धंसी बल्कि जा धंसी हैं सत्ता के उन खिलाड़ियों के ट्विटर कीबोर्ड पर, जहां से हर हगने-मूतने जैसी बातों पर भी ट्वीट आते हैं हर घड़ी।
गहलोत जी ने खबर साझा कर दुख बांट दिया, सचिन जी ने फेसबुक पर  लिखा वर्जननुमा फ़ोटो चस्पा कर दिया है।
मैडम अभी धौलपुर दौरे पर हैं। कल से 27 ट्वीट-रिट्वीट कर चुकी हैं लेकिन उनमें कहीं अमित नायर नहीं है।
खैर! मां का नाम भगवती है मतलब अपने बच्चों की रक्षा करने वाली। साथ में आई थी लोडेड रिवाल्वर लगाकर आए शूटर के और दरवाजा खटखटाया था। एक औरत ने जिस बेटी को अपनी छाती से लगाकर दूध पिलाया उसी का घरोंदा बिखेर दिया, वो बेटी भी 3 महीने बाद एक संतान को अपनी छाती से चिपका कर दूध पिलाएगी।
अब बचे हुए कुछ दोस्त हैं जो #justice4amitnair अभियान चला रहे हैं। और कर भी क्या सकते हैं विरोध करने की ताकत को हमसे सरकारें सड़कों से छीन कर  कब का ट्विटर पर ला चुकी हैं, नेताओं की तारीफ करते हुए हमें पता ही नहीं चला। फिर भी उम्मीद बाकी है क्यों कि सुना है प्रेम में बड़ी ताकत होती है।  दोस्तों ने अमित के नाम से ट्विटर हैंडल बनाया है, एड्रेस में लिखा है, 'मेरी हत्या इसीलिए कर दी गई क्योंकि मैंने प्रेम किया था'। अमित की रूह मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे को टैग कर पूछ रही है, मुझे इंसाफ चाहिए, क्या मिलेगा इंसाफ?
लेकिन मैं पूछता हूँ किससे? इंसाफ दिलाने के लिए जिसे चुनाव जिताया है वो पहले ही कह चुका है, हर दरवाजे पर पुलिस तैनात नहीं कर सकते, इस जीते हुए आदमी को राजस्थान का गृहमंत्री कहते हैं।
हालांकि मेरा सवाल फिर वही है इंसाफ किससे चाहिए? नेताओं के ट्वीट से या उस सोच से जो अमित की हत्या के अगले दिन फिर घटी?

वो सोच जो शादी के 15 साल बाद अपनी बीवी को इसलिए मार देता है क्योंकि वो अनपढ़ थी, साथ में उस मां को भी जो किसी की बेटी को उसके लिए ब्याह कर लाई थी। भले खुद 2012 तक उन्हीं मां-बाप की रोटियों पर पल रहा था।
अमित हो या संतोष दोनों हत्याएं हैं, सांस्कृतिक हत्याएं। उस पर ये चालाकी भारी राजनीतिक चुप्पियां बहुत साल रही हैं। अमित और संतोष दोनों को इंसाफ चाहिए, मगर किससे? समाज से, समाज की ऐसी प्रदूषित संस्कृति से या इन गहरी राजनीतिक चुप्पियों से जो इस प्रदूषित संस्कृति को बढ़ावा दे रही हैं?