बहुत दूर से खुद को यहां तक खींच लाया हूं बहुत आगे के सफ़र तक जाने के लिए। जहां से निकले हैं और जहां तक अभी पहुंचे हैं वो एक असंभव सी यात्रा है। बीच-बीच में कई अच्छे पड़ाव मिले हैं जिनमें IIMC एक है बाकी जिंदगी के तजुर्बे बहुत कुछ सिखा ही रहे हैं। मेरी बाख़र एक कोशिश है उन पलों को समेटने की जो काफी कुछ हमें दे जाते हैं लेकिन हमारी जी जा चुकी जिंदगी में कभी शामिल नहीं हो पाते। बाकी सीखने, पढ़ने-लिखने का काम जारी है और चाहता हूं कि ये कभी खत्म न होने वाला सफ़र भी सभी से मोहब्बत के साथ चलता रहे।
Wednesday 31 January 2018
अक्सर
Sunday 28 January 2018
लड़के
होते हैं लापरवाह, फक्कड़, अनाड़ी, मनमर्ज और बदतमीज
झेलते हैं बड़ों की झिड़क, गुस्सा और मिलता है ताना
...लेकिन जब कोई लड़का हो जाता है प्रेम में
वो सीखने लगता है
हर्फ़ दर हर्फ़ कुछ लिखने लगता है
हर लड़का हो जाता है तब बुद्ध सा जब वो प्रेम में होता है।
Tuesday 23 January 2018
दुनिया
एक रुपये में बीसियों दुनिया खरीदी हैं मैंने
उंगलियों में घुमाकर गड्डों मेंं यूं ही डाल दिया करते थे
तब हर बच्चे की जेब में हर रंग की दुनिया रहा करती थी
नीली, लाल, चटक हरी और बैंगनी दुनिया...
टूटती थी, फूटती थी और खो भी जाती थी
जेबों से ऐसे ही गिर जाती थीं, इतनी थी कि गिनने में कम पड़ जाती थी
मगर फिर भी आसानी से और मिल जाती वैसी ही रंग-बिरंगी दुनिया
वो दुनिया जो हमारे इशारों पर टिकी थी,
एक आंख बंद कर सैकंडों में इधर से उधर पलट दी जाती थी
हम सब रोज अपनी दुनियाएं बदला करते थे
कुछ घंटों के युद्ध में कितने ही मुल्क हार-जीत लिया करते थे
फिर भी अगर माधव को फिरोज की दुनिया का रंग अच्छा लगा तो फिरोज से चार के साथ एक मुफ्त मिल जाती थी
ये सहिष्णुता भी थी।
काश! ये दुनिया कांच के उस कंचे के अंदर दिख रही दुनिया होती
हम सब अपने-अपने रंग अपनी जेबों में रखते
जब मन करता किसी से बदलते
हवा में ऊपर उछालते और वापस लपक लेते
खेलते, कूदते, हंसते, इठलाते...
असल दुनिया की सीमाओं से बेफ़िक्र होते
काश! हम सब उन बच्चों जैसे होते...
काश!...