क्या तुमने सुनी अभी इन बादलों के गरजने की आवाज़
कुछ कहना चाहते हैं शायद...
बोलना चाहते हैं, बुदबुदाना चाहते हैं, सुनाना चाहते हैं महीनों की प्यासी कहानी
देखो कितना ज़ोर से गरजे हैं अभी जैसे दरवाज़े हिलाकर अंदर आना चाहते हों
क्या तुम सुनना नहीं चाहती इनके गरजने का संगीत
डर क्यों रही हो, सुनो इनकी गर्जना की लय को
ताल की मात्राओं से तय करो इनके एक मिनट में गरजने की रफ्तार...
घुंघुरू की तरह टपक रही बूंदों को अपने होठों पर लगा कर देखो
देखो गरजने की रोशनी में इन घुंघरुओं को अपने जिस्म से सरकते हुए
ये बादल आज कुछ कहना चाहते हैं...
सुनो इनकी गर्जना में छुपे इनके निवेदन को
ये बादल सच में कुछ कहना चाहते हैं।
बहुत दूर से खुद को यहां तक खींच लाया हूं बहुत आगे के सफ़र तक जाने के लिए। जहां से निकले हैं और जहां तक अभी पहुंचे हैं वो एक असंभव सी यात्रा है। बीच-बीच में कई अच्छे पड़ाव मिले हैं जिनमें IIMC एक है बाकी जिंदगी के तजुर्बे बहुत कुछ सिखा ही रहे हैं। मेरी बाख़र एक कोशिश है उन पलों को समेटने की जो काफी कुछ हमें दे जाते हैं लेकिन हमारी जी जा चुकी जिंदगी में कभी शामिल नहीं हो पाते। बाकी सीखने, पढ़ने-लिखने का काम जारी है और चाहता हूं कि ये कभी खत्म न होने वाला सफ़र भी सभी से मोहब्बत के साथ चलता रहे।
Monday 21 January 2019
आज बादल कुछ कहना चाहते हैं...
Thursday 3 January 2019
चिड़िया पूछ रही है...
सुबह सब ठीक था...
वो चहचहा कर उड़ी चुग्गा लेने
दिनभर भटकी, काली सांसें गटकी
लौटी फिर उसी चहचाहट के साथ लेकिन
देखा घरोंदा ज़मींदोज़ था, अंडे फूट गए थे
पीपल, पाखर, बरगद, सफेदा भी कट चुके थे
क्या हुआ?
चिड़िया पूछ रही है
हर ठीक सुबह की शाम इतनी काली क्यूं हो जाती है?
चिड़िया पूछ रही है