Friday 5 February 2021

किशोर उम्र में हुए यौन शोषण के दुष्परिणाम ताउम्र भुगतती हैं महिलाएं

 वो 2016 के जुलाई महीने का कोई मनहूस दिन था. घरों में झाडू-पोंछा करने वाली सुनीता (बदला हुआ नाम) की 13 साल की बेटी रोशनी (बदला हुआ नाम) जयपुर के आदर्श नगर में अपने किराये के मकान में अकेली थी. दोपहर करीब 12 बजे रोशनी के कमरे की कुंडी बजी. दरवाजा खोला तो एक लड़का जबरदस्ती घर में घुस गया. उसने पहले रोशनी के साथ मारपीट की और फिर बलात्कार किया. जान से मारने और छोटी बहन से भी बलात्कार करने की धमकी देकर वह चला गया.
आरोपी का नाम शौफीक उर्फ चूचू था जो रोशनी के सामने वाले कमरे में ही किराये पर अपने परिवार के साथ रहता था. रोशनी खुद के साथ हुए इस हादसे के बाद बेहद डर गई और उसने दुष्कर्म की बात अपनी मां सहित पूरे परिवार से छुपा ली.
रोशनी की मां सुनीता को दुष्कर्म का पता कई महीने बाद तक नहीं लग सका. इन महीनों के दौरान 5वीं कक्षा में पढ़ रही रोशनी के किशोर मन और उसके दिमाग में चल रही उथल-पुथल का ना तो कोई अंदाजा लगा सका और ना ही उसे समझने का कोई पैमाना हमारे समाज और सिस्टम ने बनाया है. रोशनी की ज़िंदगी में अचानक हुए इस ख़ौफनाक हादसे ने उसके किशोर मन में पल रहे सपने, इच्छाओं को रौंद कर रख दिया.


रोशनी


रोशनी की मां सुनीता बताती हैं,  “आरोपी के डराने और शर्मिंदगी की वजह से रोशनी ने मुझे कुछ भी नहीं बताया.”
सुनीता आगे बताती हैं, “कम पढ़ी-लिखी होने के बावजूद मैं समझती हूं कि इस उम्र (किशोर) में बच्चों के शरीर और उनके स्वभाव में कुछ बदलाव आते हैं, लेकिन रोशनी के शरीर में आ रहे बदलाव कुछ अलग तरह के थे. वह कई बार बात करते-करते रोने लगती या छत को एकटक देखने लगती.”
सुनीता बताती है, “एक दिन रोशनी के आटा गूंथते वक्त उसके बैठने के तरीके ने मुझे डरा दिया. तुरंत उसे डॉक्टर के पास लेकर गई. डॉक्टर ने जो कहा उसने हमारी पूरी जिंदगी ही बदल कर रख दी. रोशनी 6 माह से गर्भवती थी, लेकिन शारीरिक रूप से देखने पर ये नहीं लग रहा था कि उसके गर्भ में बच्चा पल रहा है.”
इसके बाद रोशनी ने अपने साथ जुलाई में हुई वारदात के बारे में पहली बार खुल कर बताया. इस अपराध की 23 जुलाई, 2016 को जयपुर के आदर्श नगर थाने में एफआईआर दर्ज हुई. पुलिस ने नाबालिग आरोपी चूचू को पकड़ा और जरूरी कार्रवाई कर बाल सुधार गृह में भेज दिया.
दुष्कर्म के कारण गर्भवती हुई रोशनी ने 2017 के अप्रैल महीने में ऑपरेशन द्वारा एक बच्ची को जन्म दिया. 13 साल की एक बच्ची अब ‘मां’ बन चुकी है.
रोशनी राजस्थान में यौन हिंसा का शिकार हुई अकेली बच्ची नहीं है. प्रदेश में सैंकड़ों बच्चियों के साथ हर साल यौन शोषण की घटनाएं हो रही हैं. आंकड़े बताते हैं कि बीते पांच साल में प्रदेश में पॉक्सो एक्ट के तहत 11,828 मामले दर्ज हुए हैं. ये आंकड़े सिर्फ 18 साल से कम उम्र के बच्चों के साथ हुए यौन हिंसा की कहानी बयां कर रहे हैं, लेकिन यह बताना मुश्किल है कि इस तरह की हिंसा के बाद शारीरिक और मानसिक समस्याओं से जूझ रही लड़कियों की संख्या कितनी है और इन दिक्कतों से ये किशोरियां किस तरह से सामना कर रही हैं?


अपनी मां सुनीता के साथ रोशनी

कम उम्र में शादी होने के कारण किशोर अवस्था में ही लाखों बच्चियों के साथ मेरिटल रेप जैसी घटनाएं भी आम हैं. ये घटनाएं देश के किसी भी थाने में दर्ज नहीं होतीं हैं. समाज के सबसे कमजोर वर्ग से आने के कारण इन किशोरियों तक स्वास्थ्य की सभी सुविधाएं भी नहीं पहुंचती हैं. कम उम्र में शादी करने के मामले में राजस्थान के भीलवाड़ा (57.2%), चित्तौड़गढ़ ( 53.6%), करौली  (49.8%), जैसलमेर( 48.4%),  टोंक (47.3%) , बाड़मेर  (46.7%), अलवर (40.8%), दौसा (40.1%), टॉप पर हैं.
सितंबर 2014 में दिल्ली की एक अदालत ने बाल विवाह को दुष्कर्म से भी बदतर  करार दिया था. बाल विवाह के खिलाफ काम करने वाले ज्यादातर लोगों का भी मानना है कि बाल विवाह के बाद हर रोज लाखों किशोरियों के साथ दुष्कर्म होता है और इसे सामाजिक मान्यता भी मिलती है. सुप्रीम कोर्ट ने भी 2017 में नाबालिग पत्नी के साथ शारीरिक संबंध बनाने को रेप बताया है.
रोशनी की तरह माधुरी, नेहा, सीमा (सभी बदला हुआ नाम) जैसी अनेकों बच्चियां हैं जिन्हें बचपन में ही बलात्कार जैसे घिनौने अपराध की पीड़ा से गुजरना पड़ा है.
रोशनी सहित इन तमाम लड़कियों को किशोरावस्था में ही अनेक तरह की शारीरिक और मानसिक परेशानियां उठानी पड़ रही हैं. ये बच्चियां जैसे-जैसे बड़ी होगी इस तरह की परेशानियां और भी बढ़ती जाएंगी.
मेडिकल की भाषा में इन परेशानियों को रीप्रोडक्टिव हेल्थ प्रॉब्लम्स कहा जाता है. इसमें अनचाहा गर्भ, असुरक्षित गर्भपात, यौन रोग, एचआईवी सहित यौन संचारित संक्रमण और ट्रॉमेटिक फिस्टूला जैसी समस्याएं आम हैं.
पीड़ित बच्चियों में रीप्रोडक्टिव स्वास्थ्य समस्याओं के अलावा मेंटल हेल्थ, व्यवहार में परिवर्तन होते हैं. दुखद ये है कि राजस्थान में परंपराओं और सामाजिक कुप्रथाओं के चलते किशोरियों की इन समस्याओं पर ना तो ज्यादा काम हो रहा है और ना ही सार्वजनिक चर्चाओं में इन बातों को कहीं जगह मिल रही है.
रोशनी ने अनचाहे गर्भ की समस्या झेली है और वो अभी 3 साल की बच्ची की मां है. उसके पीरियड्स भी अनियमित हैं. अनचाहे गर्भ के अलावा रोशनी की मानसिक स्थिति आज भी वैसी नहीं है जैसी उसकी उम्र की अन्य लड़कियों की है. उसका शारीरिक विकास भी ठीक से नहीं हुआ है.
इसी तरह जयपुर में रह रही 12 साल की माधुरी भी अपने सौतेले पिता के द्वारा 2017 में दुष्कर्म का शिकार हुई थी. दुष्कर्म के चलते उसे गर्भ ठहरा लेकिन कोर्ट की अनुमति के बाद गर्भपात करा दिया गया. महज 10 साल की उम्र में गर्भपात की वजह से माधुरी काफी कमजोर और अंडरवेट है. उसे पूरे बदन में अचानक दर्द उठता है. बुखार माधुरी के लिए एक आम बीमारी हो चुकी है. 2017 से माधुरी का स्कूल भी छूट गया और उसके मन का खुद के साथ तारतम्य भी. माधुरी डर के कारण अब घर से बाहर नहीं निकलती.  उसे भी लगभग वही सब समस्याएं हैं जो रोशनी को हैं. माधुरी को सामान्य जीवन में लाने के लिए 250 रुपए रोजाना की बेलदारी करने वाली उसकी मां ने पिछली दिवाली को किसी कबाड़ी से एक टीवी खरीदा. उसमें डीटीएच कनेक्शन भी लगवाया है, लेकिन मां मीना (बदला हुआ नाम) का कहना है, “जब भी मैं मजदूरी से शाम को घर लौटती हूं, मेरी बच्ची मुझे खुद में सिमटी बैठी हुई मिलती है. वो हंसना भूल गई है और रोना भी. उदासी और उम्र से ज्यादा समझदारी ने उसे घेर लिया है.”
मेंटल हेल्थ के संदर्भ में देखा जाए तो माधुरी खुद को और अपनी मां को इस हादसे का जिम्मेदार मानती है. बकौल माधुरी, “अगर पापा की मौत के बाद मां दूसरी शादी नहीं करती तो मेरे साथ गंदा काम नहीं होता. वह अपने अतीत के बारे में ही सोचती रहती है.” 



अतीत में रहने की इस आदत को पोस्ट ट्रॉमाटिक स्ट्रेस डिसऑर्डर (पीटीएसडी) कहते हैं. इसमें जो लोग किसी ख़ौफनाक हादसे से गुजरे होते हैं, उन्हें वही घटना हर वक्त अपने सामने होते हुए दिखाई देती है. उन घटनाओं का फ्लैशबैक उन्हें परेशान करता है.
डॉक्टर कहते हैं कि ऐसे मरीज को संबल और प्रोत्साहन की सबसे ज्यादा जरूरत होती है, लेकिन रोशनी, माधुरी जैसी तमाम लड़कियों को ये संबल नहीं मिल पाता और ना ही मुख्यधारा में शामिल होने के लिए कहीं से कोई प्रोत्साहित करता है. परिवार के सदस्य भी एक समय बाद सामान्य हो जाते हैं, लेकिन पीड़ित इस बीमारी से लंबे समय तक लड़ते रहते हैं. 
किशोर-किशोरियों के साथ होने वाले दुष्कर्मों के केसों को लंबे समय से देख रही सामाजिक कार्यकर्ता तरुणा पीड़ितों के मानसिक स्थिति के बारे में विस्तार से बताती हैं.वन स्टॉप क्राइसिस मैनेजमेंट सेंटर फॉर चिल्ड्रेन (स्नेह आंगन) में काउंसलर तरूणा बताती हैं, “रोशनी और माधुरी के केस में जब हम अस्पतालों के चक्कर काट रहे थे उस समय लोगों की बातों ने दोनों को बहुत मानसिक आघात पहुंचाया. रोशनी के लिए तो एक महिला डॉक्टर ने यहां तक कह दिया कि इसकी शादी उसी लड़के (आरोपी) के साथ कर दो. पढ़े-लिखे लोग भी ऐसे सवाल पूछते हैं जो इस तरह के पीड़ितों के सामने कभी नहीं पूछने चाहिए.”
तरुणा आगे बताती हैं, “हमारे यहां नर्सिंग स्टाफ, डॉक्टर की इस तरह की ट्रेनिंग नहीं है कि दुष्कर्म से पीड़ित किशोर-किशोरियों से किस तरह के बात की जानी चाहिए. पॉक्सो एक्ट का सेक्शन 27 मेडिकल एक्जामिनेशन की बात करता है कि डॉक्टरों और मेडिकल स्टाफ को इस तरह के केसों को कैसे डील करना चाहिए.”
प्रदेश में हजारों किशोरियों को कम उम्र में शादी होने के कारण अनचाहे गर्भ और गर्भावस्था से संबंधित परेशानियों का सामना करना पड़ता है. यहां किशोर-किशोरियों के इलाज का अनुपात 60:40 है जबकि आदर्श स्थिति में यह 60:55 होना चाहिए. कमजोर स्वास्थ्य के कारण इन किशोरियों के बच्चे भी कमजोर होते हैं. एनएफएचएस के मुताबिक प्रदेश में शिशु मृत्यु दर 41 है. जबकि ग्रामीण क्षेत्रों में यह 44 प्रति एक हजार है. 17 लाख से ज्यादा किशोरियां प्रदेश में एनीमिया से पीड़ित हैं.
इन समस्याओं के बारे में प्रदेश के सबसे बड़े अस्पतालों में से एक जेके लोन के अधीक्षक डॉ. अशोक गुप्ता कहते हैं, “कम उम्र में जबरदस्ती यौन संबंधों का असर किशोरियों पर उम्र भर रहता है. इससे उनका शारीरिक विकास रुकता है. ऐसी बच्चियों का वजन कम रहने की संभावना ज्यादा रहती है. इस स्थिति में नवजात शिशु के बीमार रहने की संभावना भी काफी बढ़ जाती है. पोषण की समस्याओं से भी किशोरियों को जूझना पड़ता है. अनियमित मासिक धर्म, बुखार जैसी समस्याएं बहुत ही आम बन जाती हैं.”
जयपुर स्थित सवाई मानसिंह मेडिकल कॉलेज में मनोविज्ञान विभाग के हेड डॉक्टर आरके सोलंकी कहते हैं, “माता-पिता और अन्य लोगों को किशोर-किशोरियों की बातों को समझने-सुनने की सबसे ज्यादा आवश्यकता होती है. खासकर किशोर उम्र में शारीरिक और यौन शोषण के केसों में ज्यादा ध्यान देने की जरूरत होती है. क्योंकि एक तरफ पीड़ित किशोर अवस्था में होने वाले बदलावों से गुजरते हैं तो दूसरी तरफ ऐसे आघात से, जिसे सहने के लिए वो शारीरिक रूप से बिलकुल तैयार नहीं होते. एक ही वक्त में ये दोनों अवस्था समानांतर तरीके से साथ चल रही होती हैं.”
सोलंकी कहते हैं, “सही काउंसलिंग और सपोर्ट नहीं मिलने के कारण पीड़ित बच्चों में एन्जाइटी, आत्महत्या का भाव आना, सेक्शुअल एन्जाइटी, भविष्य में बनने वाले रिश्तों को लेकर आशंका, आत्मविश्वास की बेहद कमी, खुद को हादसे लिए दोषी मानने जैसी सोच पैदा होने लगती है. हालांकि अलग-अलग बच्चों को अलग-अलग तरीकों से ये सारी परेशानियां झेलने पड़ती हैं. इससे बचा जा सकता है, लेकिन यह इस बात पर निर्भर करता है कि पीड़ित की हादसे के बाद किस तरह से मॉनिटरिंग, काउंसलिंग और मानसिक सपोर्ट मिला है.”
क्या कहते हैं कानून? 
किशोर-किशोरियों के प्रति होने वाले अपराधों (18 वर्ष की उम्र तक) पर रोक लगाने के लिए भारत सरकार ने पॉक्सो एक्ट, 2012 बनाया. हाल ही में इसे संशोधित भी किया गया है. एक्ट यौन अपराधों पर मल्टी सेक्टोरल इंटरवेंशन की बात करता है. सरकार मानती है कि इस तरह के अपराधों में केस होने के बाद से कोर्ट तक की प्रक्रिया में बचपन की शुचिता का ख्याल नहीं रखा जाता है. इसीलिए पॉक्सो कानून में ऐसे बच्चों के साथ डॉक्टरों का व्यवहार, पीड़ित बच्चों से बात और काउंसलिंग के तरीके, बाल कल्याण समिति की ओर से सपोर्ट पर्सन की भूमिका, पुलिस, वकील और एनजीओ का व्यवहार व उनकी भूमिका और पुनर्वास के बारे में स्पष्ट गाइडलाइंस बनी हुई हैं, लेकिन यह बेहद दुखद है कि हादसे के बाद ऐसे केसों में कानूनी कार्रवाई तो होती है मगर पुनर्वास के नाम पर सरकार और प्रशासन की सोच मुआवजे से आगे नहीं बढ़ पाती है. ज्यादातर केसों में पीड़ित बच्चों की पढ़ाई छूट जाती है और वह घर पर रहकर अकेलेपन की जद में आ जाते हैं.
सामाजिक कार्यकर्ता और स्नेह आंगन में काउंसलर तरुणा बताती हैं, “राजस्थान में किशोरियों के साथ होने वाले यौन अपराधों में से अधिकतर में बाल कल्याण समिति सपोर्ट पर्सन उपलब्ध नहीं कराती. कुछ केसों में जब बाल कल्याण समिति के सदस्य पीड़ित किशोर, किशोरी की काउंसलिंग के लिए बैठते हैं तो लगता है कि स्कूल में एडमिशन के लिए उसका इंटरव्यू लिया जा रहा है. जबकि एक्ट कहता है पीड़ित का इंटरव्यू चाइल्ड फ्रेंडली वातावरण में उसकी गरिमा का ख्याल रखते हुए लिया जाना चाहिए.”
राजस्थान सरकार में बाल कल्याण समिति, जयपुर के अध्यक्ष नरेन्द्र सिखवाल इन आरोपों के बचाव में कहते हैं, “ऐसा नहीं है. समिति सबसे पहले एक सपोर्ट पर्सन उपलब्ध कराती है और पीड़ित की ठीक तरह से काउंसलिंग की जाती है.” हालांकि वह मानते हैं कि कई केसों में समिति के सदस्य या सपोर्ट पर्सन अपना काम ठीक से नहीं कर पाते क्योंकि इसके लिए उन्हें सही से ट्रेनिंग नहीं मिली होती.
राजस्थान में बीते दो दशकों से ज्यादा वक्त से बच्चों के अधिकारों पर काम कर रहे सामाजिक कार्यकर्ता और स्नेह आंगन के समन्वयक विजय गोयल कहते हैं, “हमारे कानूनों में ही कुछ कमियां हैं. जैसे पॉक्सो एक्ट में पुनर्वास की बात तो है, लेकिन पुनर्वास का सही तरीका और स्टाफ की ट्रेनिंग कैसे करानी है, इसका जिक्र नहीं है. दूसरा, हमारे समाज को रेप पीड़िताओं को संबल देना तो दूर उनसे उस दौरान ठीक से बात करने का तरीका भी नहीं आता. बलात्कार क्या है? इसकी समझ की दिशा में हमारा समाज अभी बहुत पिछड़ा हुआ है.”
किशोर-किशोरियों के साथ होने वाली यौन हिंसा पर काम कर रहे वकील राजेन्द्र सोनी कानून में कमी होने की बात को नकारते हुए कहते हैं, “कानून तो ठीक है, लेकिन पूरे देश में पॉक्सो एक्ट की पालना नहीं हो रही. एक्ट में सपोर्ट पर्सन की बात कही है, लेकिन सपोर्ट पर्सन को ना तो नियमों की जानकारी है और ना ही बाल कल्याण समिति किसी केस में सपोर्ट पर्सन नियुक्त करती है. पूरे देश में बाल कल्याण समितियों के पास अनुभवी और ट्रेंड सपोर्ट पर्सन नहीं हैं.”
सोनी आगे कहते हैं, “समाधान के लिए सरकार को सबसे पहले पॉक्सो एक्ट की गाइडलाइंस को विभागवार दीवार पर चिपकवाना चाहिए ताकि संबंधित लोगों में ऐसे केसों में क्या करना है और क्या नहीं, इसकी बेसिक समझ पैदा हो सके. काउंसलिंग के तरीकों के बारे में भी संबंधित अधिकारियों को हर साल ट्रेनिंग देनी चाहिए.”
पश्चिमी राजस्थान में बाल विवाह के खिलाफ काम कर रहे उरमूल ट्रस्ट के सचिव अरविंद ओझा री-प्रोडक्टिव हेल्थ समस्याओं पर विस्तार से बात करते हैं. बकौल ओझा, “ये समस्याएं लड़के और लड़कियों दोनों को झेलनी पड़ती हैं, लेकिन इसकी शिकार लड़कियां ज्यादा होती हैं. एक तरफ प्रदेश में 17 लाख से ज्यादा किशोरियां एनीमिया से पीड़ित हैं, बच्चियों को 50-60% ही पोषण मिल रहा है, वहीं दूसरी ओर उसे रेगुलर सेक्स के लिए सामाजिक तौर पर अनुमति भी दे रहे हैं. यह भी चिंताजनक है कि राजस्थान में 40% किशोरियां परिवार नियोजन के साधनों का प्रयोग नहीं करती हैं.”
इन समस्याओं का समाधान यही है कि बाल विवाह एक्ट को सरकार सख्ती से लागू करे. दूसरा, ग्रामीण इलाकों में सरकारी स्कूलों से बच्चों को ड्रॉप आउड होने से बचाया जाए. तीसरा किशोर समूह के बच्चों के लिए ब्लॉक या पंचायत स्तर पर रिसोर्स सेंटर्स बनें. बच्चों से संबंधित सभी विभागों जैसे शिक्षा, स्वास्थ्य, बाल अधिकार संरक्षण आयोग और महिला एवं बाल अधिकारिता विभागों के बीच तालमेल बनाया जाए ताकि संचालित योजनाओं का लाभ ज्यादा बच्चों तक पहुंचे. इसके अलावा समाज में जागरुकता सबसे अहम है क्योंकि आज भी मासिक धर्म के दौरान खाने-छूने जैसी फालतू बातें चलन में हैं.

नोटः यह लेख मेरे ही द्वारा न्यूजलॉन्ड्री पर प्रकाशित हो चुका है। 

Sunday 10 January 2021

जीजी चली गई...

जीजी (दादी) को गए पूरे 2 महीने हो गए इस 10 को। जाने के बाद ना जाने क्यों हर रोज जाने वाले की याद आती है। उसके साथ बिताया कोई भी पल बिना किसी रोक-टोक के वक़्त- बेवक़्त आपकी यादों के रोशनदान में आकर बैठ जाता है। फिर उसी रोशनदान में जाने वाला बैठा रहता है और हम एक हल्की सी मुस्कुराहट के साथ उसके जाने को नियति मान अपने कामों में बिजी हो जाते हैं। वो हमें वहीं बैठे हुए लगातार देखता रहता है और हम पलकों के ऊपर हाथ लगाकर उसे।

सितम्बर की 12 तारीख की सुबह थी। घर से फ़ोन आया, जीजी को अटैक आया है। घर वाले घर पर रहते थे, हमारी जीजी जयपुर में अपने घर पर रहती थी। 72 की उम्र में उसने तय किया कि अब जयपुर रहेगी वो भी अपने घर में। ONE BHK फ्लैट साल भर पहले ही खरीद लिया था। lockdown ख़त्म हुआ ही था, टैक्सी ली और वापस जयपुर आ बसी। आने से पहले सब से मिलकर आई और आखिरी बार मिलने के बात किसी से कहना नहीं भूली।
मैं हॉस्पिटल पहुंचा वो होश में थी। पता चला अटैक नहीं है, ब्रेन हेमरेज हुआ है। सुबह पूजा करते वक़्त गिर गई। उसने मेरा हाथ पकड़ा और कहा, तेरे बाबा की पास जा रही हूं।
दूसरे बड़े अस्पताल में ले गया। गांव के ही न्यूरो सर्जन डॉक्टर ने 'पैसा बनाने' के मकसद से ऑपरेशन कर दिया। 10 दिन बाद उसे हल्का सा होश आया। लगा बाबा के पास जाकर वापस लौट आई है। कुछ दिन रिकवरी अच्छी रही, लेकिन पूरी तरह होश कभी नहीं आया। अस्पताल में जब भी उसे होश आता, पास में अक्सर मैं ही दिखता। रात में तो लगभग हर रोज।
ज़िंदा और ठीक रहते इतनी बार उसने कभी मेरे सिर पर हाथ नहीं फेरा जितना अस्पताल के बिस्तर से। हाथ ऐसे पकड़ती थी जैसे तुरंत पैदा हुआ बच्चा आपकी उंगली पकड़ लेता है एकदम कस कर। बाथरूम की तरफ इशारा करती और 2 उंगली खड़ी करती थी। फिर थककर उसका हाथ बेड पर गिर जाता। साथ में गिरता था आंख की कोर से एक आंसू।
लगभग 45-47 की उम्र में विधवा हो गई थी जीजी। पेंशन मिलती थी। भारत का कोई भी तीर्थ उसने घूमे बिना नहीं छोड़ा था। कपड़े का एक बैग और उसमें एक छोटा सा ताला लगाकर अकेली ही निकल पड़ती थी। हम बच्चे उस पर खूब हंसते थे कि कपड़े के बैग में ताले का फायदा क्या है? लेकिन ये हमारे बूढ़ों का सहज सरल भाव है। वृंदावन दूसरा घर था उसका।
परिवार अपनी सामाजिक व्यवस्था और तौर-तरीकों के अनुसार हर बार उसे रोकता। जब से थोड़ी समझ बनी मैंने उसे रोकना-टोकना अपने परिवार से छुड़वा ही दिया।
क्यों कि मुझे समझ आ गया कि बुढ़ापे में किसी को आदत को नहीं बदला जा सकता। उसे भी अपनी मर्ज़ी की ज़िंदगी जीने की आज़ादी है। बिना किसी के दवाब में आये उसे जो करना है वो करती है। जहां भी जाना था वो बिना किसी से पूछे निकल पड़ती थी।
मुझे लगता है गांव में वो अपनी उम्र की इकलौती औरत थी जिसका बैग हमेशा कहीं जाने के लिए तैयार रखा रहता था और उससे कोई सवाल करने वाला नहीं था।
अच्छे खाने की बेहद शौकीन। घी में तल हलवा उसे पसंद था। हम लोग 5 किलो घी लाते हैं वो 15 लीटर का पीपा खरीदती थी।
शायद उसका खाया ही डेढ़ महीने अस्पताल में काम आया।
ये लिख रहा हूं तब वो मेरे सामने बैठी है। उसका मुंहफट होना! अहा!
मोक्ष पाने के लिए एक बार मौन पर थी बहुत साल पहले। कोई पड़ोसन आई और किसी दूसरी पड़ोसन का उसके बारे में कहा सुना दिया। जीजी ने पहले अपने दिल पर हाथ रखा, फिर पेट पर और इसके बाद अपनी दोनों हथेलियां मिलाकर पीस दीं। मतलब जो मेरा दिल दुखायेगा उसका जड़-मूल से सत्यानाश हो जाएगा।
अस्पताल में उसे होश में लाने के लिए ऐसे ना जाने कितने ही किस्से हमने उसे सुनाए। उसके फ़ोन में फेवरेट भजन हेडफ़ोन लगाकर सुनाते रहते।
उसने सुना सब, लेकिन जवाब किसी बात का नहीं दिया। मुंहफट जीजी सिर्फ आंखों से बात करती थी क्योंकि गले में tracheostomy tube लगी थी। घी में तल हलवा की शौकीन 2 ML दाल का पानी पी रही थी।
डेढ़ महीने अस्पताल में पैसा सूतने के बाद डॉक्टर ने कमरे में ले जाकर हाथ जोड़ दिये। कहा, बाहर (गांव) में जाकर किसी से कुछ मत कहना।
करीब महीने भर घर रही। चचेरे भाई ने ज़िंदा रखने की खूब कोशिश की।
10 नवंबर 2020 की सुबह उसकी पुतलियां फैल गई। एक खूबसूरत औरत का अपने पति से 25 साल का बिछुड़न खत्म हुआ। 12 सितंबर को उसका आखिरी वाक्य भी यही था, तेरे बाबा के पास जा रही हूं और वो चली गई...
चंदन और फूलों में लिपटा उसका शरीर इससे पहले कभी इतना सुंदर नहीं लगा था मुझे जितना उस रोज लगा था।
ज़िंदा रहते वो कहा करती थी, जब मैं मरूँ तो मुझे खूब सेंट से नहाना। उसकी एक इच्छा थी हेलीकॉप्टर में बैठने की। ज़िंदा नहीं बैठ पाई लेकिन सचिन ने उसकी अस्थियों को हवाई जहाज में जरूर बिठाया। वो गंगा में विलीन होकर ना जाने कहां घूमने निकल गई, लेकिन मुझे अब भी रोशनदान में बैठी दिख रही है....


Thursday 3 October 2019

राजस्थान का रूप कंवर सती कांड, जिसने देश को हिलाकर रख दिया था

जयपुर में हुई रूप कंवर की शादी की तस्वीर. (फोटो: माधव शर्मा)
राजस्थान में 32 साल पहले हुआ रूप कंवर सती कांड एक बार फिर से सुर्खियों में है. चार सितंबर 1987 को सीकर जिले के दिवराला गांव में अपने पति की मौत के बाद उसकी चिता पर जलकर 18 साल की रूप कंवर ‘सती’ हो गई थी.
दिसंबर 1829 में ब्रिटिश सरकार द्वारा इस प्रथा को प्रतिबंधित किए जाने के 158 साल बाद पूरी दुनिया का ध्यान सती होने की इस घटना ने खींचा था. 4 सितंबर 1987 को हुई इस घटना में 32 लोगों को गिरफ्तार किया था जो सीकर कोर्ट से अक्टूबर 1996 में बरी हो गए.
इसके बाद 16 सितंबर 1987 को राजपूत समाज ने रूप कंवर की तेरहवीं (13 दिन की शोक परंपरा) के मौके पर चुनरी महोत्सव का आयोजन किया था. इस महोत्सव में दिवराला गांव में लाखों लोग जमा हो गए थे.
चुनरी महोत्सव का आयोजन हाईकोर्ट की रोक के बावजूद भी किया गया. हालांकि इस मामले में कोई केस नहीं बना. इसीलिए यह मामला आगे नहीं बढ़ा.

अभी चर्चा क्यों?

इसके बाद रूप कंवर की पहली बरसी के मौके पर 22 सितंबर 1988 को राजपूत समाज के लोगों ने दिवराला से अजीतगढ़ तक एक जूलूस निकाला, लेकिन बारिश के कारण जुलूस ज्यादा आगे नहीं जा सका.
इसके बाद रात 8 बजे एक ट्रक में 45 लोगों ने अजीतगढ़ के लिए जुलूस निकाला. इसमें उपयोग किए ट्रक पर ‘जय श्री रूप कंवर की जय’ का बैनर लगा था. देश के कई हिस्सों से आए राजपूत समाज के लोगों ने नंगी तलवारें लहराईं और सती प्रथा को जायज ठहराने की कोशिश की.
पुलिस ने इस मामले में सती प्रथा के महिमा मंडन के आरोप में सभी 45 लोगों को गिरफ्तार किया था.
गिरफ्तारी के चार दिन बाद ही 26 सितंबर 1988 को आरोपियों के खिलाफ कोर्ट में चालान पेश किया गया. कई दशक तक चली सुनवाई के बाद 2004 में अदालत ने 45 में से 25 आरोपियों को बरी कर दिया. सुनवाई के दौरान 6 आरोपियों की मौत हो गई और 6 आरोपी फरार घोषित किए गए.
इस तरह बाकी बचे आठ आरोपियों के खिलाफ सुनवाई अंतिम दौर में है, लेकिन हाल ही में एक और आरोपी लक्ष्मण सिंह ने कोर्ट में आत्मसमर्पण कर दिया है. इसीलिए अब सती प्रथा के महिमा मंडन के आरोप में 9 लोगों के खिलाफ सुनवाई होनी है.
ये सुनवाई सती निवारण कोर्ट में अपने अंतिम दौर में है और इस मामले में कभी भी फैसला सुनाया जा सकता है. इसीलिए 1987 में हुआ सती कांड एक बार फिर चर्चा में आ गया है.
2004 में बरी किए गए 25 लोगों में से फिलहाल राजस्थान की कांग्रेस सरकार में परिवहन मंत्री प्रताप सिंह खाचरियावास, पिछली भाजपा सरकार में स्वास्थ्य और पंचायती राज मंत्री रहे राजेंद्र सिंह राठौड़, रूप कंवर के भाई गोपाल सिंह राठौड़ और एक चचेरा भाई सहित कई बड़े नाम भी शामिल थे.
सरकारी वकील नरपत सिंह ने इसी साल अगस्त में पत्र लिखकर आरोपियों की फिर से गवाही की अनुमति कोर्ट से मांगी थी, लेकिन बचाव पक्ष के वकील सुरेंद्र सिंह नारुका ने फिर से गवाही कराने के कोई ठोस कारण न होने की बात कही है.
जयपुर में रूप कंवर के भाई गोपाल सिंह राठौड़ के ऑफिस में सती के रूप में रूप कंवर की तस्वीर. (फोटो: माधव शर्मा)
अब मामले की अगली सुनवाई चार अक्टूबर को होनी है. इसमें कोर्ट तय करेगा कि अदालत में फिर से गवाही की जाए या नहीं? इसके अलावा बचाव पक्ष सरकारी वकील द्वारा लिखे गए पत्र का जवाब भी कोर्ट में पेश करेगा.
आरोपी पक्ष के वकील सुरेंद्र सिंह ने बताया कि श्रवण सिंह, महेंद्र सिंह, निहाल सिंह, जितेंद्र सिंह, उदय सिंह, नारायण सिंह, भंवर सिंह और दशरथ सिंह के खिलाफ अभी ट्रायल चल रहा है. कोर्ट बाद में इनका फैसला सुनाएगी.
वहीं, सरकारी वकील नरपत सिंह का कहना है कि कोर्ट की अगली सुनवाई में हाल ही में सरेंडर हुए आरोपी लक्ष्मण सिंह पर आरोप तय होंगे और फिर से गवाही कराने को लेकर लिखे पत्र का आरोपी पक्ष के वकील कोर्ट में अपना जवाब पेश करेंगे.

रूप कंवर सती कांड, जिसने मुख्यमंत्री की कुर्सी छीन ली

घटना साल 1987 के चार सितंबर की है. सीकर जिले के दिवराला गांव में राजपूत समाज के माल सिंह (24) के पेट में तीन सितंबर की शाम को अचानक दर्द उठा. उन्हें इलाज के लिए सीकर लाया गया और चार सितंबर की सुबह उनकी मौत हो गई.
जयपुर के ट्रांसपोर्ट व्यवसायी बाल सिंह राठौड़ के छह बच्चों में सबसे छोटी 18 साल रूप कंवर की माल सिंह से महज आठ महीने पहले ही जनवरी में शादी हुई थी. माल सिंह की मौत के बाद उसकी चिता पर रूप कंवर भी जलकर सती हो गई थीं.
हालांकि राजपूत समाज और ग्रामीणों ने कहा कि रूप कंवर अपनी मर्जी से सती हुई है लेकिन पुलिस तफ्तीश में यह बात सही नहीं निकली कि रूप कंवर अपनी मर्जी से सती हुई है. बताया जाता है उस वक्त रूप कंवर पर सती होने के लिए दबाव बनाया गया था.
स्थानीय और राजपूत समाज के लोगों ने रूप कंवर को सती माता का रूप दे दिया और उसकी याद में छोटे से मंदिर का निर्माण भी कर दिया.
इसके बाद राजपूत समाज ने 16 सितंबर को दिवराला गांव में चितास्थल पर चुनरी महोत्सव की घोषणा कर दी. जयपुर में कई महिला संगठनों, सामाजिक कार्यकर्ताओं और वकीलों ने राजस्थान हाईकोर्ट के तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश जेएस वर्मा के नाम इस समारोह को रोकने के लिए चिट्ठी लिखी और वर्मा ने इस चिट्ठी को ही जनहित याचिका मानकर समारोह पर रोक लगा दी.
हाईकोर्ट ने चुनरी महोत्सव को सती प्रथा का महिमा मंडन माना और सरकार को आदेश दिया कि ये समारोह किसी भी स्थिति में न हो.
चीफ जस्टिस के नाम चिट्ठी लिखने वालों में से एक राजस्थान महिला आयोग की पूर्व अध्यक्ष लाड कुमारी जैन उस घटना को याद करते हुए कहती हैं, ‘चार सितंबर की घटना के बाद 14 सितंबर को हम मुख्यमंत्री से मिलने सचिवालय गए थे, लेकिन मुख्यमंत्री हरिदेव जोशी हमसे नहीं मिले. शुरुआत में पूरी सरकार अप्रत्यक्ष रूप से इस प्रथा का समर्थन कर रही थी.’
उन्होंने कहा, ‘इस ‘हत्या’ के खिलाफ हमने 14 सितंबर को सैकड़ों महिलाओं के साथ जयपुर में एक बड़ी रैली निकाली और इसी दिन हमने महिला वकील सुनीता सत्यार्थी के साथ मिलकर एक पन्ने पर मुख्य न्यायाधीश के नाम चिट्ठी लिखी. 15 सितंबर को कोर्ट में सुनवाई हुई. सती प्रथा के पक्ष में काफी वकील कोर्ट में थे, इसके खिलाफ गिनती के वकील ही खड़े हुए. शाम तक कोर्ट ने चुनरी महोत्सव पर रोक लगा दी थी.’
जैन आरोप लगाते हुए कहती हैं, ‘उस समय प्रशासन ने सीकर एसपी के जरिये दिवराला में सूचना भिजवा दी कि कोर्ट ने महोत्सव पर रोक लगा दी है इसीलिए इसे समय से पहले ही कर लिया जाए.’
लाड कुमारी आगे कहती हैं, ‘रोक के बावजूद 10 हजार की आबादी वाले दिवराला गांव में 15 सिंतबर की रात से ही लोग जमा होने लगे. अगले दिन सुबह तक गांव में एक लाख से ज्यादा लोग चुनरी महोत्सव के लिए इकट्ठा हो गए. हाईकोर्ट के आदेशों का पालन करने के लिए मजबूर पुलिस दिवराला से चार किमी दूर ही खड़ी रही. पुलिस मूकदर्शक बनी रही और लोगों ने तय समय 11 बजे से पहले ही सुबह 8 बजे चुनरी महोत्सव मना लिया.’
रूप कंवर के भाई गोपाल सिंह राठौड़. (फोटो: माधव शर्मा)
जैन आगे कहती हैं, ‘उस वक्त चाहे कांग्रेस हो या बीजेपी सभी पार्टियां सिर्फ दिखने के लिए विरोध में थे. उनके एक्शन से जाहिर हो रहा था कि वे अप्रत्यक्ष रूप से सती प्रथा के समर्थन में हैं. न तो सत्ता पक्ष के किसी विधायक ने इसके खिलाफ आवाज़ उठाई और न ही विपक्षी दलों के किसी नेता ने. क्योंकि 1990 में विधानसभा के चुनाव होने थे इसीलिए नेता जनता की नाराजगी मोल नहीं लेना चाहते थे, खासकर पूरे राजपूत समाज की. चुनरी महोत्सव में दोनों पार्टियों के कई विधायक भी शामिल हुए थे.’
जयपुर के ट्रांसपोर्ट नगर इलाके में रह रहे रूप कंवर के भाई गोपाल सिंह राठौड़ की राय लाड कुमारी से अलग है. वे अपनी बहन को देवी के समान मानते हैं.
ट्रांसपोर्ट कारोबारी गोपाल सिंह राठौड़ कहते हैं, ‘हमारे लिए रूप कंवर देवी मां के समान हैं और बेहद आदरणीय हैं. आज भी हर साल जल झूलनी एकादशी को दिवराला में सती का मेला लगता है. आस-पास के गांवों सहित गुजरात से भी सैकड़ों लोग वहां आते. पूरे दिन सती की जोत जलती है और भजन-कीर्तन होता है. इसी सितंबर की नौ तारीख को दिवराला में बड़ा मेला लगा. आसपास के लोगों में सती के प्रति आस्था है.’
चुनरी महोत्सव को याद करते हुए गोपाल बताते हैं, ‘उस दिन दिवराला में लाखों लोग जमा हो गए थे. हाईकोर्ट ने चुनरी महोत्सव नहीं होने के आदेश दिए थे, लेकिन तत्कालीन मुख्यमंत्री हरिदेव जोशी ने सूझ-बूझ से काम लिया और पुलिस को गांव से चार किलोमीटर दूर ही रुकने के मौखिक आदेश दिए थे. क्योंकि अगर पुलिस का गांववालों से सामना होता तो हजारों लोगों की जान जाती.’
सती प्रथा गलत और सही के सवाल पर गोपाल कहते हैं, ‘मैं भी सती प्रथा के विरोध में हूं, लेकिन रूप कंवर प्रथा की बजाय अपनी मर्जी से सती हुई थीं. जो कि राजपूत संस्कृति के अनुसार सही है. प्रथा के तहत तो सभी विधवाओं को सती होना अनिवार्य था.’
उन्होंने कहा, ‘रूप कंवर का अपने पति के प्रति इतना प्रेम था कि वो उनके बिना जिंदा नहीं रहना चाहती थी. अगर सती होने के लिए किसी ने उन पर दबाव डाला होता तो हम सबसे पहले उन पर केस कर देते, लेकिन उस गांव में हमारी काफी रिश्तेदारियां हैं, बुआ-बहन पहले से ब्याही हुई हैं तो हमें यही पता चला कि रूप कंवर अपनी मर्जी से सती हुई है.’
रूप कंवर सती कांड के बाद दिवराला और जयपुर में देशी-विदेशी मीडिया का जमघट लग गया. इस कांड ने पूरी दुनिया में भारत की महिलाओं के नजरिये से छवि खराब की. तब की केंद्रीय महिला एवं बाल विकास मंत्री मंत्री मारग्रेट अल्वा ने जुलाई 2016 में जयपुर में अपनी आत्मकथा ‘करेज एंड कमिटमेंट’ का विमोचन करते हुए दिवराला सती केस से जुड़ा एक किस्सा सुनाया था.
बकौल अल्वा, ‘दिवराला सती कांड के विरोध पर तब के कुछ राजपूत सांसद मुझसे आकर मिले थे. उन्होंने कहा कि आप क्रिश्चियन हैं, राजपूतों की परंपराओं के बारे में क्या जानती हैं? तब मैंने उन्हें जवाब दिया कि आपके घरों में जो मां-बहनें विधवा हैं, उन्हें सती क्यों नहीं किया गया?’
रूप कंवर और उनके पति माल सिंह. (फोटो: माधव शर्मा)
किताब के अनुसार, अल्वा ने इसी समारोह में कहा था कि दिवराला केस के बाद उन्होंने तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी को इस्तीफे की पेशकश की थी, लेकिन उन्होंने इस्तीफा नामंजूर कर दिया और कहा कि आप इस्तीफा क्यों देंगी जो लोग दोषी हैं उन्हें इस्तीफा देना चाहिए.
इसके बाद राजस्थान के तत्कालीन मुख्यमंत्री हरिदेव जोशी को कांग्रेस नेतृत्व ने राज्यपाल को अपना इस्तीफा सौंपने का निर्देश दे दिया. इस तरह रूप कंवर सती कांड ने मुख्यमंत्री की कुर्सी हरिदेव जोशी से छीन ली.

चौतरफा आलोचना के बाद राजस्थान सरकार अध्यादेश लाई

रूप कंवर सती कांड से राजस्थान की देशभर में आलोचना होने लगी. राजस्थान के तत्कालीन गृह मंत्री गुलाब सिंह शक्तावत की अध्यक्षता में कमेटी बनी. राज्य सरकार एक अक्टूबर 1987 को सती निवारण और उसके महिमा मंडन को लेकर एक अध्यादेश लाई जिसे तत्कालीन मुख्यमंत्री हरिदेव जोशी की अध्यक्षता में मंत्रिमंडल ने मंजूरी दी.
अध्यादेश के तहत किसी विधवा को प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से सती होने के लिए उकसाने वालों को फांसी या उम्रकैद की सजा देने और ऐसे मामलों में महिमा मंडित करने वालों को सात साल कैद और अधिकतम 30 हजार रुपये जुर्माना लगाने का प्रावधान रखा गया.
मंत्रिमंडल द्वारा अध्यादेश पारित करने के बाद तत्कालीन राज्यपाल बसंत दादा पाटिल ने राजस्थान सती निरोधक अध्यादेश 1987 पर दस्तखत कर दिए. बाद में सती (निवारण ) अधिनियम को राजस्थान सरकार द्वारा 1987 में कानून बनाया. भारत सरकार ने इसे 1988 में संघीय कानून में शामिल किया.
रूंप कंवर के भाई गोपाल सिंह राठौड़ इस कानून को गलत मानते हैं. वे कहते हैं, ‘हमारी धार्मिक मान्यताओं के बीच कानून नहीं आना चाहिए. इसीलिए हम इस कानून के खिलाफ हैं. अक्टूबर में अध्यादेश लाने के बाद भी राजपूत समाज ने जयपुर के रामलीला मैदान में कानून की खिलाफत की थी. मैं सती प्रथा निवारण कानून के विरोध में आज भी हूं.’
कानून के विरोध और सती में उनकी धार्मिक मान्यता की तस्दीक गोपाल सिंह के ऑफिस के कमरे के पूजा घर में रखी रूप कंवर की चिता पर बैठी तस्वीर कर रही है जिसे आसमान से देवता आशीर्वाद दे रहे हैं.

1987 के बाद राजस्थान में सती के 24 केस सामने आए

राजस्थान सती निरोधक कानून बनने के बाद इसके तहत राजस्थान में सती प्रथा के 24 केस दर्ज किए गए गए हैं. इनमें से 13 केस 1987 में, सात केस 1988, दो 1989 और एक-एक केस 1993 और साल 2000 में सामने आए हैं.
इन सभी मामलों में कुल 151 लोगों को आरोपी बनाया गया. इनमें से 129 को बरी किया जा चुका है. नौ आरोपियों पर अभी ट्रायल चल रहा है. बाकी बचे 13 आरोपियों में से कुछ की मौत हो गई और कुछ फरार चल रहे हैं.
हालांकि रूप कंवर का केस सती होने का आखिरी केस है, जिसमें किसी महिला की मौत हुई है. इसके बाद दर्ज हुए मामलों में महिलाओं ने सती होने की कोशिश की, लेकिन उन्हें बचा लिया गया.
वरिष्ठ पत्रकार जितेंद्र सिंह शेखावत कहते हैं, ‘राजपूतों की नजर में सती होना सही और पारंपरिक घटना थी लेकिन आधुनिक समाज में ऐसी घटनाओं का विरोध होना ही था. राजपूतों ने रूप कंवर के सती होने के समर्थन में जयपुर में काफी प्रदर्शन किया था, जिससे सरकार भी थोड़ी डर गई थी.
वे कहते हैं, ‘लेकिन जितना राजपूत इस घटना के समर्थन में थे, उतना ही प्रबल प्रदर्शन इस प्रथा के विरोध में भी देखने को मिला था. वामपंथी संगठनों से जुड़े लोगों ने इन विरोध प्रदर्शनों का नेतृत्व किया था.’

आठ महीनों में पति के साथ सिर्फ 20 दिन रही थी रूप कंवरः फैक्ट फाइडिंग रिपोर्ट

रूप कंवर सती केस के बाद बॉम्बे यूनियन ऑफ जर्नलिस्ट ने महिला और मीडिया की एक टीम बनाई थी. तीन सदस्यों की इस टीम की 40 पेज की रिपोर्ट में रूप कंवर केस और उसकी मीडिया रिपोर्टिंग को बारीकी से सामने रखा है.
बॉम्बे यूनियन ऑफ जर्नलिस्ट की ओर से गठित फैक्ट फाइंडिंग टीम की रिपोर्ट जिसमें बताया गया है कि रूप कंवर अपने पति के साथ तकरीबन 20 दिन ही रही थीं.
रिपोर्ट के मुताबिक रूप कंवर 10वीं कक्षा तक पढ़ी थीं और उनके पति माल सिंह ग्रेजुएट थे माल सिंह के पिता सुमेर सिंह गांव के ही एक स्कूल में प्रिंसिपल थे.
दोनों की 17 जनवरी 1987 को शादी हुई. जनवरी से चार सितंबर 1987 तक शादी के इन 8 महीनों में रूप कंवर पति माल सिंह के साथ सिर्फ 20 दिन ही रही थी. इसमें ज्यादातर दिन शादी के बाद तो कुछ दिन रूप कंवर की मौत से पहले दोनों ने एक साथ गुजारे थे.
इस बारे में रूप कंवर के भाई कहते हैं, ‘मुझे इस बारे में ठीक से याद नहीं कि दोनों एक साथ कितने दिन रहे थे, लेकिन दोनों पति-पत्नी साथ में कम ही दिन रहे थे. शादी के बाद अधिकांश दिन रूप कंवर ने अपने मायके में ही बिताया था.’
रिपोर्ट कहती है कि रूप कंवर के सती होने और माल सिंह की मौत के बारे में उसके पिता बाल सिंह राठौड़ को अगले दिन अखबारों की खबरों से पता चला था. जबकि जयपुर से दिवराला की दूरी महज दो घंटे की ही थी.
गोपाल सिंह के अनुसार, उन्हें घटना के अगले दिन राजस्थान पत्रिका के संवाददाता विशन सिंह शेखावत (राजस्थान के पूर्व सीएम और उपराष्ट्रपति भैरोंसिह शेखावत के छोटे भाई) ने फोन कर बताया था.
रिपोर्ट के अनुसार, घटना के 11 दिन बाद काफी विरोध के चलते राजस्थान के तत्कालीन मुख्यमंत्री हरिदेव जोशी ने टेलीविजन पर घटना की निंदा की. तत्कालीन गृहमंत्री गुलाब सिंह शक्तावत घटना के वक्त सूखा प्रभावित क्षेत्र के दौरे पर निकले थे. शक्तावत का दावा था कि उन्हें घटना के बारे में 7-8 सितंबर को जैसे ही पता चला उन्होंने इसकी जांच के आदेश दे दिए.
फैक्ट फाइंडिंग टीम ने रूप कंवर मामले में हिंदी, अंग्रेजी और तमाम मीडिया की रिपोर्टिंग उस केस के बारे में की गई विस्तृत खबरों के बारे में भी रिपोर्ट सौंपी थी.
सामाजिक कार्यकर्ता और विविधाः महिला आलेखन एवं संदर्भ केंद्र की सचिव ममता जैतली ने दिवराला सती केस पर एक किताब भी लिखी की है. ‘रूप कंवरः देह दहन से अदालतों तक’ घटना का विस्तृत ब्योरा देती है और अंत में महिला स्वतंत्रता के नजरिये से कई महत्वपूर्ण सवाल उठाती है.
इस मामले में प्रशासन का ढीला रवैया, राजनीतिक इच्छाशक्ति की कमी और न्यायालय के आदेशों की अवहेलना के कई किस्से बताए गए हैं.
किताब के अनुसार, ‘दिवराला की घटना को अध्यादेश के दायरे में नहीं लाया जा सकता था, लेकिन अध्यादेश जारी होने के बाद सती के समर्थन में हो रही गतिविधियां इसके दायरे में आ रही थीं. मगर जातियों और तमाम समूहों से जुड़े लोगों ने इसकी खुलेआम धज्जियां उड़ाईं. राजपूत समाज के लोगों ने सती होने को अपनी परंपरा के रूप में जोड़ा.’
किताब के मुताबिक, ‘उस समय सती धर्म रक्षा समिति का गठन हुआ और कुछ लोगों ने इससे अपनी राजनीति शुरू की. किताब के मुताबिक उस समय सती के महिमामंडन की जयपुर और अलग-अलग स्थानों पर 22 से ज्यादा आयोजन हुए, लेकिन इसमें से कार्रवाई सिर्फ 1988 वाली घटना में ही हो सकी.’
ममता कहती हैं, ‘रूप कंवर के केस में धर्म, राजनीति और पितृसत्ता का जो गठजोड़ दिखाई दिया उससे यह तो तय हो गया कि राजसत्ता भी पुरुष प्रधान मानसिकता से ग्रसित है. इसीलिए उसका झुकाव इन्हीं ताकतों के प्रति है.’
बहरहाल रूप कंवर की मौत को जायज ठहराने के भी जो तर्क तब थे वे अब भी दिए जा रहे हैं और जो विरोध में थे वे 32 साल बाद भी डटे हुए हैं.

Saturday 17 August 2019

नदी की आवाज़

शांति की चीख़ों भी तेज होती है नदी की आवाज़
तमाम दुखों से भी ज़्यादा होता है नदी का दुख
विस्थापन के रंज की स्थायी गवाह होती है नदी
कहीं से निकल कर किसी में समा जाने की क्षमता सिर्फ नदी में हो सकती है
क्योंकि नदियों ने देखे होते हैं सभ्यता के सारे दुख
मैं नदी नहीं हूं, हो भी नहीं सकता
नदी होने का मतलब रोते रहना बिना आसुंओं के बहते रहना है
मुझे नदी नहीं बनना, उसके रास्ते में पड़ा हुआ पत्थर बनना है
ताकि छूती रहे नदी मेरी आत्मा को और मैं उसके छूने से एक आकृति में ढल जाऊं
सुनता रहूं उसकी शांति की चीख़ों को
महसूस करता रहूं साल दर साल उसके आने को
मुझे नदी नहीं, उसके रास्ते में पड़ा पत्थर होना है....

Tuesday 13 August 2019

कविता: लौटना

जैसे लहरें लौटती हैं किनारे तक
जैसे नदियां लौट आती हैं पहाड़ों तक
जैसे बारिश लौटती है, धरती के स्पर्श को
वैसे ही तुम भी लौट आओगी
लौट आओगी, किसी किनारे पर हाथ पकड़ कर साथ चलने को
तुम लौट आओगी सुनने, हर मौसम में आवाज़ बदलती नदी के शोर को
तुम लौटोगी बारिश की उस बूंद को बाहें फैलाये अपनी हथेली पर समेटने को
तुम लौट आओगी जैसे लौटता है कोई जोगी शाम को अपने ठीये पर
तुम लौट आओगी जैसे लहरें लौटती हैं किनारे तक....

Wednesday 26 June 2019

साबित

हमें साबित करना होता है सब कुछ किसी के लिए
ये भी कि हम कितना मज़बूत हैं
रोते नहीं हैं, उदास भी नहीं होते कभी
भावनाएं नहीं आती हमारे निर्णयों के बीच में
लिखते हैं, लिख कर फिर मिटा देते हैं
क्योंकि हमें साबित करना है सब कुछ किसी के लिए

किसी की खुशी के लिए दांव पर लगा देते हैं ज़िन्दगी
सिर्फ जताने के लिए कि कितनी फ़िक्र है उनकी
नफ़रत करने लगते हैं उनसे, जिनके लिए कभी रातों को सोया नहीं करते
बहुत मुश्किल होता है अपने अंदर सब समा लेना, ज़ाहिर नहीं होने देना
ज़ाहिर होने पर भी अहसास नहीं होने देना हुनर होने लगता है हमारा
क्योंकि हमें साबित करना होता है सब कुछ किसी के लिए
#Madhav






Thursday 7 March 2019

औरतें जो मर गईं...

कुछ औरतें थीं जो अमर हुई
और कुछ थीं जो मर गईं इन अमर आत्माओं के साथ
बहुत लिखा गया कुछ औरतों पर
मगर कुछ के लिए एक शब्द भी नहीं
मगर जिन्हें नसीब नहीं हुआ शब्दों का प्यार वही ज़्यादा क़ाबिल हैं शायद
लिखे गए मीरा बाई के लिए असंख्य शब्द लेकिन उनका क्या जो सखी रहती थीं मीरा के साथ?
ललिता के सिवा क्या हम जानते हैं राधा की किसी सहेली के बारे में?
क्या हम में से कोई जानता है रानी लक्ष्मी बाई की किसी साथी के बारे में?
या इस बारे में भी कि आज़ादी की लड़ाई में कितनी महिलाओं ने बेच दिए थे अपने कंगन और टीके?
कभी भी, कहीं भी नहीं लिखा गया खान में पत्थर तोड़ती किसी महिला पर
ना ही लिखा गया उस महिला पर जिसके सर में एक फफोला पड़ गया कुएं से पानी भरते हुए
कभी किसी ने नहीं लिखी कोई कविता हमारी टट्टी सिर पे उठाने वाली महिला के लिए
ना ही कोई देख सका उस औरत का प्यार जो दीयों के साथ बना कर लाती थी एक गुल्लक
कौन लिखेगा उस काकी पर जिसके झाड़े से हुए सैंकड़ों 'बांझों' को बेटे
और वो दाई जिसकी मालिश से बड़े हुए दुनिया के कई 'बड़े' मर्द
बिना किसी इतिहास के यूं ही मर गईं बहुत सी औरतें
मर गई लाखों महिलाएं खेतों की मेड़ पक्की करते हुएऔर कितनी ही दफ़ना दी गई उन्हीं मेड़ों में बलात्कार कर के
कितनी औरतें मरी घरों की चारदीवारी में घुट-घुट कर, कोई नहीं जानता
कितनी औरतों को मारा उनके पिता ने और कितनों  को मारा गया कोख में किसी औरत के द्वारा ही
नहीं लिखा गया इनके बारे में भी कभी कोई निबंध या कोई कविता
असल में जो जिंदा रहा वही लिखा गया
जो दिखाया गया वही देखा गया
हरे रंग के पीछे नहीं दिखाया गया कपास का उगना और उसका टूटना
बहुत कुछ था जो औरतों पर लिखने से छूट गया
बहुत कुछ है जो औरतों पर लिखने से छूट रहा है...
क्यूं कि कुछ औरतें थीं जो अमर हुई
और कुछ थीं जो मर गईं इन अमर आत्माओं के साथ...
Madhav

Monday 21 January 2019

आज बादल कुछ कहना चाहते हैं...

क्या तुमने सुनी अभी इन बादलों के गरजने की आवाज़
कुछ कहना चाहते हैं शायद...
बोलना चाहते हैं, बुदबुदाना चाहते हैं, सुनाना चाहते हैं महीनों की प्यासी कहानी
देखो कितना ज़ोर से गरजे हैं अभी जैसे दरवाज़े हिलाकर अंदर आना चाहते हों
क्या तुम सुनना नहीं चाहती इनके गरजने का संगीत
डर क्यों रही हो, सुनो इनकी गर्जना की लय को
ताल की मात्राओं से तय करो इनके एक मिनट में गरजने की रफ्तार...
घुंघुरू की तरह टपक रही बूंदों को अपने होठों पर लगा कर देखो
देखो गरजने की रोशनी में इन घुंघरुओं को अपने जिस्म  से सरकते हुए
ये बादल आज कुछ कहना चाहते हैं...
सुनो इनकी गर्जना में छुपे इनके निवेदन को
ये बादल सच में कुछ कहना चाहते हैं।

Thursday 3 January 2019

चिड़िया पूछ रही है...

सुबह सब ठीक था...
वो चहचहा कर उड़ी चुग्गा लेने
दिनभर भटकी, काली सांसें गटकी
लौटी फिर उसी चहचाहट के साथ लेकिन
देखा घरोंदा ज़मींदोज़ था, अंडे फूट गए थे
पीपल, पाखर, बरगद, सफेदा भी कट चुके थे
क्या हुआ?
चिड़िया पूछ रही है
हर ठीक सुबह की शाम इतनी काली क्यूं हो जाती है?
चिड़िया पूछ रही है

Wednesday 26 December 2018

पहले जैसा

जब आंसू कोर तक आ जाएं
और हिलकियां गले तक
जब बातें होठों पर हों
और जुबां सिल जाए
जब दिमाग भविष्य देख रहा हो
और दिल बीते दिनों में झूलने लगे
जब मैं 'मैं' ना रहकर तू बन रहा हो
और 'तू' तू न रहकर मैं बनने की ठान ले
जब मैं मेरे 'मैं' को छोड़कर तू बनने लगे
और तू मैं बनने की कोशिश में 'तू' भी ना बन सके
इस 'मैं-तू' के बनने-बिगड़ने से अगर बिखरने लगे सब कुछ...
तब सब कुछ छोड़ कर वैसे ही कर देना बेहतर है शायद
क्यों कि तब आसूं लौट जाएंगे कोरों से
हिलकियां बिना पानी पिये उतर जाएंगी आंतों तक
बातें बुदबुदाकर दब जाएंगी जीभ के नीचे
दिमाग  स्थिर होकर सोचेगा वर्तमान को
जब...
सब कुछ छोड़कर कर दिया जाए पहले जैसा ही...