मेरी बाखर
बहुत दूर से खुद को यहां तक खींच लाया हूं बहुत आगे के सफ़र तक जाने के लिए। जहां से निकले हैं और जहां तक अभी पहुंचे हैं वो एक असंभव सी यात्रा है। बीच-बीच में कई अच्छे पड़ाव मिले हैं जिनमें IIMC एक है बाकी जिंदगी के तजुर्बे बहुत कुछ सिखा ही रहे हैं। मेरी बाख़र एक कोशिश है उन पलों को समेटने की जो काफी कुछ हमें दे जाते हैं लेकिन हमारी जी जा चुकी जिंदगी में कभी शामिल नहीं हो पाते। बाकी सीखने, पढ़ने-लिखने का काम जारी है और चाहता हूं कि ये कभी खत्म न होने वाला सफ़र भी सभी से मोहब्बत के साथ चलता रहे।
Friday 5 February 2021
किशोर उम्र में हुए यौन शोषण के दुष्परिणाम ताउम्र भुगतती हैं महिलाएं
वो 2016 के जुलाई महीने का कोई मनहूस दिन था. घरों में झाडू-पोंछा करने वाली सुनीता (बदला हुआ नाम) की 13 साल की बेटी रोशनी (बदला हुआ नाम) जयपुर के आदर्श नगर में अपने किराये के मकान में अकेली थी. दोपहर करीब 12 बजे रोशनी के कमरे की कुंडी बजी. दरवाजा खोला तो एक लड़का जबरदस्ती घर में घुस गया. उसने पहले रोशनी के साथ मारपीट की और फिर बलात्कार किया. जान से मारने और छोटी बहन से भी बलात्कार करने की धमकी देकर वह चला गया.
Sunday 10 January 2021
जीजी चली गई...
सितम्बर की 12 तारीख की सुबह थी। घर से फ़ोन आया, जीजी को अटैक आया है। घर वाले घर पर रहते थे, हमारी जीजी जयपुर में अपने घर पर रहती थी। 72 की उम्र में उसने तय किया कि अब जयपुर रहेगी वो भी अपने घर में। ONE BHK फ्लैट साल भर पहले ही खरीद लिया था। lockdown ख़त्म हुआ ही था, टैक्सी ली और वापस जयपुर आ बसी। आने से पहले सब से मिलकर आई और आखिरी बार मिलने के बात किसी से कहना नहीं भूली।
मैं हॉस्पिटल पहुंचा वो होश में थी। पता चला अटैक नहीं है, ब्रेन हेमरेज हुआ है। सुबह पूजा करते वक़्त गिर गई। उसने मेरा हाथ पकड़ा और कहा, तेरे बाबा की पास जा रही हूं।
दूसरे बड़े अस्पताल में ले गया। गांव के ही न्यूरो सर्जन डॉक्टर ने 'पैसा बनाने' के मकसद से ऑपरेशन कर दिया। 10 दिन बाद उसे हल्का सा होश आया। लगा बाबा के पास जाकर वापस लौट आई है। कुछ दिन रिकवरी अच्छी रही, लेकिन पूरी तरह होश कभी नहीं आया। अस्पताल में जब भी उसे होश आता, पास में अक्सर मैं ही दिखता। रात में तो लगभग हर रोज।
ज़िंदा और ठीक रहते इतनी बार उसने कभी मेरे सिर पर हाथ नहीं फेरा जितना अस्पताल के बिस्तर से। हाथ ऐसे पकड़ती थी जैसे तुरंत पैदा हुआ बच्चा आपकी उंगली पकड़ लेता है एकदम कस कर। बाथरूम की तरफ इशारा करती और 2 उंगली खड़ी करती थी। फिर थककर उसका हाथ बेड पर गिर जाता। साथ में गिरता था आंख की कोर से एक आंसू।
लगभग 45-47 की उम्र में विधवा हो गई थी जीजी। पेंशन मिलती थी। भारत का कोई भी तीर्थ उसने घूमे बिना नहीं छोड़ा था। कपड़े का एक बैग और उसमें एक छोटा सा ताला लगाकर अकेली ही निकल पड़ती थी। हम बच्चे उस पर खूब हंसते थे कि कपड़े के बैग में ताले का फायदा क्या है? लेकिन ये हमारे बूढ़ों का सहज सरल भाव है। वृंदावन दूसरा घर था उसका।
परिवार अपनी सामाजिक व्यवस्था और तौर-तरीकों के अनुसार हर बार उसे रोकता। जब से थोड़ी समझ बनी मैंने उसे रोकना-टोकना अपने परिवार से छुड़वा ही दिया।
क्यों कि मुझे समझ आ गया कि बुढ़ापे में किसी को आदत को नहीं बदला जा सकता। उसे भी अपनी मर्ज़ी की ज़िंदगी जीने की आज़ादी है। बिना किसी के दवाब में आये उसे जो करना है वो करती है। जहां भी जाना था वो बिना किसी से पूछे निकल पड़ती थी।
मुझे लगता है गांव में वो अपनी उम्र की इकलौती औरत थी जिसका बैग हमेशा कहीं जाने के लिए तैयार रखा रहता था और उससे कोई सवाल करने वाला नहीं था।
अच्छे खाने की बेहद शौकीन। घी में तल हलवा उसे पसंद था। हम लोग 5 किलो घी लाते हैं वो 15 लीटर का पीपा खरीदती थी।
शायद उसका खाया ही डेढ़ महीने अस्पताल में काम आया।
ये लिख रहा हूं तब वो मेरे सामने बैठी है। उसका मुंहफट होना! अहा!
मोक्ष पाने के लिए एक बार मौन पर थी बहुत साल पहले। कोई पड़ोसन आई और किसी दूसरी पड़ोसन का उसके बारे में कहा सुना दिया। जीजी ने पहले अपने दिल पर हाथ रखा, फिर पेट पर और इसके बाद अपनी दोनों हथेलियां मिलाकर पीस दीं। मतलब जो मेरा दिल दुखायेगा उसका जड़-मूल से सत्यानाश हो जाएगा।
अस्पताल में उसे होश में लाने के लिए ऐसे ना जाने कितने ही किस्से हमने उसे सुनाए। उसके फ़ोन में फेवरेट भजन हेडफ़ोन लगाकर सुनाते रहते।
उसने सुना सब, लेकिन जवाब किसी बात का नहीं दिया। मुंहफट जीजी सिर्फ आंखों से बात करती थी क्योंकि गले में tracheostomy tube लगी थी। घी में तल हलवा की शौकीन 2 ML दाल का पानी पी रही थी।
डेढ़ महीने अस्पताल में पैसा सूतने के बाद डॉक्टर ने कमरे में ले जाकर हाथ जोड़ दिये। कहा, बाहर (गांव) में जाकर किसी से कुछ मत कहना।
करीब महीने भर घर रही। चचेरे भाई ने ज़िंदा रखने की खूब कोशिश की।
10 नवंबर 2020 की सुबह उसकी पुतलियां फैल गई। एक खूबसूरत औरत का अपने पति से 25 साल का बिछुड़न खत्म हुआ। 12 सितंबर को उसका आखिरी वाक्य भी यही था, तेरे बाबा के पास जा रही हूं और वो चली गई...
चंदन और फूलों में लिपटा उसका शरीर इससे पहले कभी इतना सुंदर नहीं लगा था मुझे जितना उस रोज लगा था।
ज़िंदा रहते वो कहा करती थी, जब मैं मरूँ तो मुझे खूब सेंट से नहाना। उसकी एक इच्छा थी हेलीकॉप्टर में बैठने की। ज़िंदा नहीं बैठ पाई लेकिन सचिन ने उसकी अस्थियों को हवाई जहाज में जरूर बिठाया। वो गंगा में विलीन होकर ना जाने कहां घूमने निकल गई, लेकिन मुझे अब भी रोशनदान में बैठी दिख रही है....
Thursday 3 October 2019
राजस्थान का रूप कंवर सती कांड, जिसने देश को हिलाकर रख दिया था
जयपुर में हुई रूप कंवर की शादी की तस्वीर. (फोटो: माधव शर्मा) |
अभी चर्चा क्यों?
जयपुर में रूप कंवर के भाई गोपाल सिंह राठौड़ के ऑफिस में सती के रूप में रूप कंवर की तस्वीर. (फोटो: माधव शर्मा) |
रूप कंवर सती कांड, जिसने मुख्यमंत्री की कुर्सी छीन ली
रूप कंवर के भाई गोपाल सिंह राठौड़. (फोटो: माधव शर्मा) |
रूप कंवर और उनके पति माल सिंह. (फोटो: माधव शर्मा) |
चौतरफा आलोचना के बाद राजस्थान सरकार अध्यादेश लाई
1987 के बाद राजस्थान में सती के 24 केस सामने आए
आठ महीनों में पति के साथ सिर्फ 20 दिन रही थी रूप कंवरः फैक्ट फाइडिंग रिपोर्ट
बॉम्बे यूनियन ऑफ जर्नलिस्ट की ओर से गठित फैक्ट फाइंडिंग टीम की रिपोर्ट जिसमें बताया गया है कि रूप कंवर अपने पति के साथ तकरीबन 20 दिन ही रही थीं. |
Saturday 17 August 2019
नदी की आवाज़
तमाम दुखों से भी ज़्यादा होता है नदी का दुख
विस्थापन के रंज की स्थायी गवाह होती है नदी
कहीं से निकल कर किसी में समा जाने की क्षमता सिर्फ नदी में हो सकती है
क्योंकि नदियों ने देखे होते हैं सभ्यता के सारे दुख
मैं नदी नहीं हूं, हो भी नहीं सकता
नदी होने का मतलब रोते रहना बिना आसुंओं के बहते रहना है
मुझे नदी नहीं बनना, उसके रास्ते में पड़ा हुआ पत्थर बनना है
ताकि छूती रहे नदी मेरी आत्मा को और मैं उसके छूने से एक आकृति में ढल जाऊं
सुनता रहूं उसकी शांति की चीख़ों को
Tuesday 13 August 2019
कविता: लौटना
जैसे लहरें लौटती हैं किनारे तक
जैसे नदियां लौट आती हैं पहाड़ों तक
जैसे बारिश लौटती है, धरती के स्पर्श को
वैसे ही तुम भी लौट आओगी
लौट आओगी, किसी किनारे पर हाथ पकड़ कर साथ चलने को
तुम लौट आओगी सुनने, हर मौसम में आवाज़ बदलती नदी के शोर को
तुम लौटोगी बारिश की उस बूंद को बाहें फैलाये अपनी हथेली पर समेटने को
तुम लौट आओगी जैसे लौटता है कोई जोगी शाम को अपने ठीये पर
तुम लौट आओगी जैसे लहरें लौटती हैं किनारे तक....
Wednesday 26 June 2019
साबित
हमें साबित करना होता है सब कुछ किसी के लिए
ये भी कि हम कितना मज़बूत हैं
रोते नहीं हैं, उदास भी नहीं होते कभी
भावनाएं नहीं आती हमारे निर्णयों के बीच में
लिखते हैं, लिख कर फिर मिटा देते हैं
क्योंकि हमें साबित करना है सब कुछ किसी के लिए
किसी की खुशी के लिए दांव पर लगा देते हैं ज़िन्दगी
सिर्फ जताने के लिए कि कितनी फ़िक्र है उनकी
नफ़रत करने लगते हैं उनसे, जिनके लिए कभी रातों को सोया नहीं करते
बहुत मुश्किल होता है अपने अंदर सब समा लेना, ज़ाहिर नहीं होने देना
ज़ाहिर होने पर भी अहसास नहीं होने देना हुनर होने लगता है हमारा
क्योंकि हमें साबित करना होता है सब कुछ किसी के लिए
#Madhav
Thursday 7 March 2019
औरतें जो मर गईं...
कुछ औरतें थीं जो अमर हुई
और कुछ थीं जो मर गईं इन अमर आत्माओं के साथ
बहुत लिखा गया कुछ औरतों पर
मगर कुछ के लिए एक शब्द भी नहीं
मगर जिन्हें नसीब नहीं हुआ शब्दों का प्यार वही ज़्यादा क़ाबिल हैं शायद
लिखे गए मीरा बाई के लिए असंख्य शब्द लेकिन उनका क्या जो सखी रहती थीं मीरा के साथ?
ललिता के सिवा क्या हम जानते हैं राधा की किसी सहेली के बारे में?
क्या हम में से कोई जानता है रानी लक्ष्मी बाई की किसी साथी के बारे में?
या इस बारे में भी कि आज़ादी की लड़ाई में कितनी महिलाओं ने बेच दिए थे अपने कंगन और टीके?
कभी भी, कहीं भी नहीं लिखा गया खान में पत्थर तोड़ती किसी महिला पर
ना ही लिखा गया उस महिला पर जिसके सर में एक फफोला पड़ गया कुएं से पानी भरते हुए
कभी किसी ने नहीं लिखी कोई कविता हमारी टट्टी सिर पे उठाने वाली महिला के लिए
ना ही कोई देख सका उस औरत का प्यार जो दीयों के साथ बना कर लाती थी एक गुल्लक
कौन लिखेगा उस काकी पर जिसके झाड़े से हुए सैंकड़ों 'बांझों' को बेटे
और वो दाई जिसकी मालिश से बड़े हुए दुनिया के कई 'बड़े' मर्द
बिना किसी इतिहास के यूं ही मर गईं बहुत सी औरतें
मर गई लाखों महिलाएं खेतों की मेड़ पक्की करते हुएऔर कितनी ही दफ़ना दी गई उन्हीं मेड़ों में बलात्कार कर के
कितनी औरतें मरी घरों की चारदीवारी में घुट-घुट कर, कोई नहीं जानता
कितनी औरतों को मारा उनके पिता ने और कितनों को मारा गया कोख में किसी औरत के द्वारा ही
नहीं लिखा गया इनके बारे में भी कभी कोई निबंध या कोई कविता
असल में जो जिंदा रहा वही लिखा गया
जो दिखाया गया वही देखा गया
हरे रंग के पीछे नहीं दिखाया गया कपास का उगना और उसका टूटना
बहुत कुछ था जो औरतों पर लिखने से छूट गया
बहुत कुछ है जो औरतों पर लिखने से छूट रहा है...
क्यूं कि कुछ औरतें थीं जो अमर हुई
और कुछ थीं जो मर गईं इन अमर आत्माओं के साथ...
Madhav
Monday 21 January 2019
आज बादल कुछ कहना चाहते हैं...
क्या तुमने सुनी अभी इन बादलों के गरजने की आवाज़
कुछ कहना चाहते हैं शायद...
बोलना चाहते हैं, बुदबुदाना चाहते हैं, सुनाना चाहते हैं महीनों की प्यासी कहानी
देखो कितना ज़ोर से गरजे हैं अभी जैसे दरवाज़े हिलाकर अंदर आना चाहते हों
क्या तुम सुनना नहीं चाहती इनके गरजने का संगीत
डर क्यों रही हो, सुनो इनकी गर्जना की लय को
ताल की मात्राओं से तय करो इनके एक मिनट में गरजने की रफ्तार...
घुंघुरू की तरह टपक रही बूंदों को अपने होठों पर लगा कर देखो
देखो गरजने की रोशनी में इन घुंघरुओं को अपने जिस्म से सरकते हुए
ये बादल आज कुछ कहना चाहते हैं...
सुनो इनकी गर्जना में छुपे इनके निवेदन को
ये बादल सच में कुछ कहना चाहते हैं।
Thursday 3 January 2019
चिड़िया पूछ रही है...
सुबह सब ठीक था...
वो चहचहा कर उड़ी चुग्गा लेने
दिनभर भटकी, काली सांसें गटकी
लौटी फिर उसी चहचाहट के साथ लेकिन
देखा घरोंदा ज़मींदोज़ था, अंडे फूट गए थे
पीपल, पाखर, बरगद, सफेदा भी कट चुके थे
क्या हुआ?
चिड़िया पूछ रही है
हर ठीक सुबह की शाम इतनी काली क्यूं हो जाती है?
चिड़िया पूछ रही है
Wednesday 26 December 2018
पहले जैसा
जब आंसू कोर तक आ जाएं
और हिलकियां गले तक
जब बातें होठों पर हों
और जुबां सिल जाए
जब दिमाग भविष्य देख रहा हो
और दिल बीते दिनों में झूलने लगे
जब मैं 'मैं' ना रहकर तू बन रहा हो
और 'तू' तू न रहकर मैं बनने की ठान ले
जब मैं मेरे 'मैं' को छोड़कर तू बनने लगे
और तू मैं बनने की कोशिश में 'तू' भी ना बन सके
इस 'मैं-तू' के बनने-बिगड़ने से अगर बिखरने लगे सब कुछ...
तब सब कुछ छोड़ कर वैसे ही कर देना बेहतर है शायद
क्यों कि तब आसूं लौट जाएंगे कोरों से
हिलकियां बिना पानी पिये उतर जाएंगी आंतों तक
बातें बुदबुदाकर दब जाएंगी जीभ के नीचे
दिमाग स्थिर होकर सोचेगा वर्तमान को
जब...
सब कुछ छोड़कर कर दिया जाए पहले जैसा ही...