Saturday 9 June 2018

अक्टूबर के फूल

उसे फूल पसंद थे। उसे फूल चुनना पसंद था। घास में पड़े फूल उठाकर कटोरी में भर लेना भी उसे बेहद पसंद था, लेकिन फूलों के गिर जाने पर उन्हें ना उठाने वाले उसे बिल्कुल पसंद नहीं थे। बेतरतीबी भी उसे पसंद नहीं थी। पसंद थे तो सिर्फ फूल। झक सुफेद जिसके माथे पर लाल बिंदी लगी होती है वही फूल। एक दिन फूल गिरा लेकिन कोई उसे समेट नहीं पाया। समेटने वाली खुद सिमट गई ICU की मशीनों से।  उसके सिमटते ही घास पर चादर बिछना बंद हो गई। सारे फूल गिर कर मुरझाने लगे। फूल की खुशबू की जगह दवाइयों की गंध ने ले ली। मुरझाये फूल भी महक रहे थे लेकिन उसकी पहुंच से दूर। फिर कोई बेतरतीब आया कटोरी में फूल लेकर। मशीनों की आवाज़ों के बीच फूल उसके सिरहाने रख दिये गए। उसके नथूने फूले, फूलों ने कमाल कर दिया। बेतरतीब रोज फूल लाने लगा। वो फूल देखकर फूली नहीं समाती लेकिन ज़ाहिर नहीं कर सकती। फिर एक दिन बेतरतीब चला गया। उसका जाना फूलों की महक के जाने जैसा था। मशीनें फिर भारी होने लगीं। बेतरतीब लौट आया, महक भी लौट आई।
लेकिन जब तक वो लौटा महीना बीत चुका था। फूल खिलने का मौसम रीत गया था। वो मुरझाकर लाश बन गई थी।
वो अक्टूबर का ही महीना था। वो अक्टूबर के फूल थे...लाल बिंदी वाले।
#october #varun