Sunday 11 October 2015

तुम्हारी ट्रैजडी क्या है पॉलिटिक्स?


कभी-कभी लगता है राजनीति अच्छी चीज होने के बावजूद सब बर्बाद करने पर तुली हुई है। सब बोर करने लग जाता है। ये भाषण, अखबार, टीवी, रेडियो और वे दुनियावी लोग जिनका सारे संसाधनों पर कब्जा है। वही दिल्ली के आस-पास रची गई खबरें और उन पर बेमतलब की घंटों बहस करते चतुर नेता और हम पत्रकार। लगता है किसी चीज का कोई मतलब ही नहीं रह गया है। लेकिन फिर भी मन को लगता है एक दिन सब सुधर जाएगा। सड़कों पर बिखरा हुआ आदमी ही इन उम्मीद को हवा देता है। वो हवा सदियों पुरानी होने के बावजूद एकदम ताजी सी लगती है। एक ऐसी ही हवा पिछले दिनों मैंने महसूस की, ठीक उसी वक्त जब हम दादरी और बीफ पर बहस कर रहे थे। एक मुस्लिम लड़के के कुएं में उतरकर गाय को बचाने को बहुत बड़ी बात कह रहे थे जबकि ऐसा हमारे गली-मोहल्लों में रोजाना होता है। हमारे अवचेतन में उस वक्त न हिंदू होता है ना मुसलमां।

सलीम मियां हमारा आटा पीस देगा का, को सलीम मियां अपनी जुबान की नकल करना नहीं मानते और न ही उस बात का बुरा मानते हैं, बस हमेेशा क्यों नईं पीसंगे पंडित जी कह कर हंस देते हैं। मेरे दोस्त फिरोज के बाबा मुश्तु घर के आगे से जब भी निकलते हैं, मास्टर राम-राम कहते हैं (पापा अध्यापक हैं) और पापा जानबूझकर मुश्तु बाबा को सलाम कहते हैं। बकरियों के पीछे-पीछे चलते हुए मुश्तु बाबा कभी-कभार कह जाते हैं, मास्टर एक गाय बांध लै, दूध है जागौ घर में बच्चन के काजें।
ये एक-दूसरे के लिए अदब ही है कि घर में पुट्टी करते मुल्ला जी घर की एक दीवार पर बने लक्ष्मी, गणेश और सरस्वती की पेटिंग को ढंकने के लिए बोलते हैं, टेप से चिपकवाने में भी मदद करते हैं। क्या है न पंडित जी, दिवाली आ रही है तो इनकी पूजा होगी, पुट्टी में ये दब जाएंगे इसीलिए इन पर अखबार लगा देते हैं।
जयपुर के मोती डूंगरी रोड पर मुसाफिरखाना है। शुक्रवार को घंटेभर के लिए वहां गया था। जुमे की नमाज पढ़ कर एक बुजुर्ग उसी चाय की दुकान पर आ गए जहां मैं बैठा था। एक जनाब इनसे मजे ले रहे थे। 82 साल के पहलवान खां से मैंने यूं ही बोल दिया, आप अभी इतने स्मार्ट हैं तो जवानी में कितने सुंदर रहे होंगे। वो हंस दिए, बोले, अभी भी हूं,कोई शक है क्या? नहीं, नहीं बिलकुल नहीं। मेरे कान के पास आकर बोले, मैं आर्मी का आदमी रहा हूं। हिंदुस्तान के लिए आज भी जान दे सकता हूं, आधी रात को भी। अभी भी फौज के लोगों से मेरे ताल्लुकात हैं और ये बेवकूफ मेरे मजे ले रहा है।

इसीलिए कहता हूं हमारे खून में हिंदू-मुसलमान नहीं है। मुझे एक मुसलमान लड़के का कुएं में उतरकर गाय को बचाना कोई हैरतभरा नहीं लगा। दुनिया में जो भी इंसान है और इंसानियत को मानता है उनका सोचने का तरीका एक ही है, वो जब भी कुछ गलत होते हुए देखता है, बचाने की ही कोशिश करता है। जो नहीं करता वो इसी तरह की राजनीति का शिकार है। राजनीति चतुर है और उसके शिकार लोग मूर्ख। इसलिए गाय और बीफ चतुर लोगों का मूर्ख पर राज करने का तरीका भर है बस और जो इस बात को समझ  रहे हैं वो ही अगली पीढ़ी का प्रतिनिधित्व करेंगे।