रात के 10 बजे हैं लेकिन आसमान में कोई तारा नहीं है। लग रहा है चांद अपने घर की कोई खिड़की तोड़ जवाहर कला केन्द्र के आंगन में छिड़ी राग वागेश्वरी की तानों को सुनने उतर आया है। ये तान छेड़ रखी हैं सारंगी वादक पद्मश्री उस्ताद मोइनुद्दीन खान ने। सामने कुर्सियों और मसनदों पर पीठ टिकाए लोग हैं जिनमें आधे से ज्यादा युवा हैं। मद्धम रोशनी में हर किसी की उंगलियां घुटनों पर जाकर थिरक रही हैं, पैर ठुमक रहे हैं।
मुस्कुराती
सारंगी से निकली बड़े गुलाम
अली की ‘सैंया बोलो मोसे तनिक
रह्यो ना जाय’ ठुमरी पर युवाओं
की वाह-वाह
क्लासिकल सिंगिंग के बने-बनाए
दायरों को तोड़ रही है जो सुखद
है।
सुरों
से सजी रात थोड़ी और बड़ी हुई,
12 बज
गए हैं। मसनदों के सहारे जमे
लोगों की तरह चांद भी ठहरा हुआ
है ओपन थियेटर के ठीक ऊपर। मंच
पर चांदनी जैसी महीन आवाज
समेटे एक शख्सियत आती है कौशिकी
चक्रवर्ती। जयपुर को नमस्कार,
प्रणाम
करती हैं और राग मालकोश में
‘कब आओगे साजन’ शुरू किया।
गीत शुरू हुआ और सरगम नाचने
लगीं। नजारा कुछ-कुछ
ऐसा ही है जैसा हम आज किताबों
में राजाओं की सभाओं की शास्त्रीय
गायन की महफिलों को पढ़ते हैं।
तबले की थाप और कौशिकी की सरगम
जैसे ही एक साथ बंद होती,
दर्शकों
के हाथ ऊपर उठते हैं
वाह-वाह
करते हुए।
अब चूंकि राजस्थान
है तो मीरा जेहन में क्यों न
आए?
‘सांवरा
म्हारी प्रीत निभाजो...
प्रीत
निभाजो जी...’
भजन
जैसे ही शुरू हुआ ओपन थिेयेटर
की दीवार पर लटके पोस्टर पर
छपी मीरा बाई मुस्कुराने लग
गईं।
रात
का तीसरा पहर शुरू हो रहा है,
पोस्टर
की मीरा अभी भी मुस्कुरा रही
हैं। इसी बीच पं.
विश्वमोहन
भट्ट अपनी मोहनवीणा और पं.
रामकुमार
मिश्र तबले के साथ मंच पर आए
हैं। कई रागों की सरिता में
बहाने के बाद पं.
भट्ट
ने ग्रैमी अवार्ड विनिंग अपनी
एल्बम ‘ए मीटिंग बाय द रिवर’
सुनाया।
सर्दी रंग दिखा रही
है लेकिन सुरों की ऊर्जा में
लोग अभी तक डटे हुए हैं। तबले
और मोहनवीणा की जुगलबंदी की
बीच सुबह की साढ़े तीन बज चुके
हैं। देश में ध्रुपद के दो बड़े
नाम पद्मश्री उमाकांत और
रमाकांत गुंदेचा बंधुओं ने
ब्रह्म मुहूर्त यानी सुबह
5.30
बजे
तक ध्रुपद गायन किया।
ध्रुपद ज्यादा समझ नहीं आता पर एक ही समय में नाभि और कंठ से सुर निकालना बड़ी टेड़ी खीर है |
इसके
बाद मंच पर आए हैं प्रख्यात
शास्त्रीय गायक राजन और साजन।
उन्होंने राग भटियार में ‘उचट
गई मोरी नींदरिया हो बलमा...’
से
शुरू किया। अब आसमान का अंधेरा
छंटने लगा है,
पंछियों
के चहकने की आवाजें आने लगी
हैं। चांद भी आसमान से गायब
हो गया,
शायद
जमीं के किसी कोने में उतर ही
आया है लेकिन दिखाई नहीं दे
रहा। सूरज भी निकलने की तैयारी
कर रहा है,
इधर
राजन-साजन
इस प्रभात का स्वागत कर रहे
हैं,
‘ आयो
प्रभात,
सब
मिल गाओ,
हरि
को रिझाओ रे...’
किसी
सुबह का ऐसा स्वागत कब और कहां
देखने को मिलता है भला?
सुबह का स्वागत करते राजन-साजन मिश्र |