‘मैं
अपने घर का पूरा काम करती हूं।
झाडू-पोंछा, बर्तन
और कपड़े भी धो कर आती हूं। मम्मी
के साथ खाना भी बनवाती हूं।
इसके बाद स्कूल आती हूं। फिर
भी मम्मी बोलती हैं कि स्कूल
में कौनसे किले टूटे जा रहे
हैं जो जाना जरूरी ही है एक
दिन मत जा क्या फर्क पड़ेगा?
मैंने मम्मी को बोला,
पढ़ाई है मुझे जाना है,
मेरे इतना कहने से
मम्मी नाराज हो गईं। एक दिन
रात में मेरे भाई ने पानी मांगा
तो मैंने कहा, उठ
के पी ले। उसने मम्मी को शिकायत
कर दी और मम्मी ने मुझे डांट
दिया। एक बार मेरे भाई ने कहा
कि मम्मी मुझे सिंगिंग सीखनी
है तो उसे म्यूजिक क्लास भेज
दिया और मैंने कहा कि मम्मी
मुझे डांस सीखना है तो मम्मी
बोली, डांस सीखके
क्या मुजरा करना है’?
शालिनी
क्लास रूम में डबडबाई आंखों
से जैसे-जैसे ये
सुना रही थी दिल बैठा जा रहा
था। हमारे सुनने के लिए वही
सब था जो हमारे समाज में आम है
लेकिन जैसे ही मुजरा शब्द
कानों में गया, शरीर
में सिहरन सी दौड़ गई। कोई मां
अपनी बेटी से ऐसा कह सकती है
भला? वो बेटी कितनी
हिम्मत वाली है जो वहां अपने
साथ पढ़ने वाली 11 लड़कियों
के सामने खुल कर बता रही है कि
उसकी ही मां ने उसकी तुलना
मुजरा करने वालियों से कर दी
जिन्हें हमने कभी औरत समझा
ही नहीं है। उसका यह सब बताना
भी एक बड़ी लड़ाई है या यूं कहूं
उसकी जीत है।
त्रिवेणी
नगर के सरकारी स्कूल में गए
तो 8वीं क्लास की
लड़कियां मिलीं। बातें वही
थीं जो और जगह सुनने को मिली।
फोटो खींच लेने के बाद मैं
उनके बीच जाकर बैठ गया या यूं
कहिए मैं बैठ गया तो चारों तरफ
से उन्होंने मुझे घेर लिया।
ऐसी बातें जो वे सिर्फ अपनी
मां या टीचर से करती हैं वो
मुझसे भी करने लगीं। तभी हॉल
में एक तीखी सी आवाज गूंजी।
लड़कियों की उम्र 18 साल
है शादी के लिए। मैंने कहा हां
सही तो है इसमें दिक्कत क्या
है? बोली, दिक्कत
है, अब 18 की
होते-होते शादी कर
देते हैं लोग आगे बढ़ने ही नहीं
देते। मैं आईएएस बनूंगी तो
जरूर इसे 21 साल करने
की लड़ाई लडूंगीं।
एक
पत्रकार के तौर पर आप खबर करते-करते कितना कुछ सीखते हैं इसका पता हमें उस
वक्त नहीं चल पाता। 4 दिन बाद यह लिख पा रहा हूं क्योंकि उनकी कई बातें
मेरे अवचेतन में जमा हो गई हैं। शुरूआत कुछ ऐसे हुई कि 11
अक्टूबर को इंटरनेशनल
गर्ल्स चाइल्ड डे था। साथी
जयकिशन ने कहा, इस
पर क्यों न कोई स्टोरी की जाए?
ऑफिस में प्रतीत सर
से बात की कि क्या हो सकता है।
बात निकली कि आज भी समाज में
लाखों लोग हैं जो कहते हैं
लड़की है क्या कर लेगी? इस
बात का जवाब हम लड़कियों से ही
लेंगे कि वे क्या कर सकती हैं।
तय हुआ कि हम किसी प्राइवेट
स्कूल में नहीं जाएंगे,
सिर्फ सरकारी स्कूलों
की बच्चियों से बात करेंगे
कि वे इस पर क्या सोचती हैं।
ऐसा इसीलिए क्योंकि सरकारी
स्कूलों में लोअर मिडिल क्लास
और गरीब लोगों के बच्चे पढ़ते
हैं। हालांकि मुझे उम्मीद थी
कि वे कहेंगी तो वही सब जो समाज
में आमतौर पर महिलाएं और लड़कियां
कहती हैं लेकिन जब उनसे बात
तो मैं उनका आत्मविश्वास देखकर
हैरान था। 6वीं क्लास
में पढ़ने वाली लड़कियां खुद
और समाज में जो घट रहा है इतनी
बारीकी से देखती-समझती
होंगी मैंने सोचा ना था। जो
आत्मविश्वास और नॉलेज उनका
7वीं या 8वीं
क्लास में है वो मेरा तो 12वीं
कक्षा में भी नहीं था। अक्सर
इन सब बातों से मैं थोड़ा भावुक
हो जाता हूं लेकिन इस बार खुश
हुआ। ये वो लड़कियां नहीं हैं
जिनके परिवार बहुत ज्यादा
पढ़े-लिखे हैं। किसी
के पिता टैक्सी चलाते हैं तो
किसी के छोटी सी दुकान।
मुझे
इन लड़कियों का नहीं पता कि वो
क्या करेंगी या जो बनना चाहती
हैं बन पाएंगी भी या नहीं लेकिन
इतना जरूर है इनके बच्चे वो
सब कर पाएंगे जो वो करना चाहेंगे।
वो दिन आएगा लेकिन काश वो दिन
आज ही होता तो....
भैया
आप आए हैं तो बहुत अच्छा लग
रहा है। अपने दिल की बातें
कहने का मौका मिल रहा है। ऐसे
तो हमारे भाई भी हमसे बात नहीं
करते जैसे आप कर रहे हैं। इतना
अच्छा लग रहा है कि बता नहीं
सकते हम। ऐसे ही महीने-दो
महीने में आते रहा करिए ताकि
हम जो बातें समेट कर खुद के
अंदर दफनाए रखते हैं आपको बता
सकें। आते-आते उस
लड़की की इस बात ने थोड़ा इमोशनल
सा कर दिया।