Wednesday 26 December 2018

पहले जैसा

जब आंसू कोर तक आ जाएं
और हिलकियां गले तक
जब बातें होठों पर हों
और जुबां सिल जाए
जब दिमाग भविष्य देख रहा हो
और दिल बीते दिनों में झूलने लगे
जब मैं 'मैं' ना रहकर तू बन रहा हो
और 'तू' तू न रहकर मैं बनने की ठान ले
जब मैं मेरे 'मैं' को छोड़कर तू बनने लगे
और तू मैं बनने की कोशिश में 'तू' भी ना बन सके
इस 'मैं-तू' के बनने-बिगड़ने से अगर बिखरने लगे सब कुछ...
तब सब कुछ छोड़ कर वैसे ही कर देना बेहतर है शायद
क्यों कि तब आसूं लौट जाएंगे कोरों से
हिलकियां बिना पानी पिये उतर जाएंगी आंतों तक
बातें बुदबुदाकर दब जाएंगी जीभ के नीचे
दिमाग  स्थिर होकर सोचेगा वर्तमान को
जब...
सब कुछ छोड़कर कर दिया जाए पहले जैसा ही...