Sunday 22 November 2015

बाकी तो हम सब अपनी मर्जी का करते ही हैं...



कभी-कभी हम वो सब देखते हैं जो जिंदगी में अपने साथ होता हुआ नहीं देखना चाहते। क्यों हम वो समझ नहीं पाते जो हमें बचपन से समझाया जाता रहा है और सही भी है। जो आप कर रहे हैं वो शायद इसलिए आपके लिए गलत ना हो क्योंकि करोड़ों लोग उसी काम को कर रहे होते हैं लेकिन जो गलत है वो गलत हैं चाहे पूरी दुनिया उसी काम को कर रही हो, सही और फैशन मान कर। 

शुरूआत शायद यहीं से होती है रिश्तों के दरकने की, वक्त है संभलने का हो सके तो प्लीज! मैं वो सब नहीं देख पाया, गुस्सा था, अफसोस और अजीब किस्म की दया भी। सिवाय बर्बादी के और कुछ नहीं हो सकता उस रास्ते पर, जहां पर हम कभी निकल जाते हैं बिना सोचे-समझे कोई तर्क और कोई सफाई उस वक्त आपको किसी के सामने खड़ा नहीं कर पाएगी। 

अपने वजूद को पहचानिए और थोड़ा देखिए अपने गुजरे हुए कल की तरफ और फिर सामने देखिए उस रास्ते को जिसे आप संकरा कर रहे हैं अपने लिए और अपने बचे-खुचे सूत से रिश्तों के लिए। बस जो था यही है बाकी तो हम सब अपनी मर्जी का करते ही हैं।

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