आधे काले, आधे सफेद लंबे बालों में हाथ फेरता वो उतरा। एक साइड अपना साईकल रिक्शा लगाया। थकान उसकी लग्जिश में थी, हाथ धोये और फिर से अपने गीले हाथ सिर में फिर लिए। ढावे के बाहर यानी सड़क पर पड़ी कुर्सी पर बैठा। अंदर नहीं गया क्योंकि अंदर एसी लगा था। उसने वेटर को अध मरे इशारे से बुलाया। वो आया एक छोटी कटोरी में प्याज लेकर। उसने आर्डर दिया। सबसे जल्दी आर्डर पूरा हुआ। प्लेट में सिर्फ एक तंदूर रोटी थी और एक छाछ का गिलास। पानी मुफ्त में मिला था। पहले बीच का नरम हिस्सा खाया और फिर रोटी की बगलें उसने निगल ली कुछ छाछ से तो कुछ पानी से। प्याज बची रह गई, किसी प्याज मंडी की तरह!
वो उठा और एक थैली से कुछ सिक्के निकले। काउंटर पर बैठे शख्स ने पूछा, क्या-क्या है? उसने एक उंगली उठाकर इशारा किया। साईं के मंदिर भले अमीर हों लेकिन ज़िंदा आदमी गरीबी में साईं जैसा लगता है। उसने अपनी पेंट ऊपर खिसकाई और रिक्शा थाम आगे बढ़ गया। ठीक वैसे ही जैसे किक मारकर वो लड़का बढ़ा...
बहुत दूर से खुद को यहां तक खींच लाया हूं बहुत आगे के सफ़र तक जाने के लिए। जहां से निकले हैं और जहां तक अभी पहुंचे हैं वो एक असंभव सी यात्रा है। बीच-बीच में कई अच्छे पड़ाव मिले हैं जिनमें IIMC एक है बाकी जिंदगी के तजुर्बे बहुत कुछ सिखा ही रहे हैं। मेरी बाख़र एक कोशिश है उन पलों को समेटने की जो काफी कुछ हमें दे जाते हैं लेकिन हमारी जी जा चुकी जिंदगी में कभी शामिल नहीं हो पाते। बाकी सीखने, पढ़ने-लिखने का काम जारी है और चाहता हूं कि ये कभी खत्म न होने वाला सफ़र भी सभी से मोहब्बत के साथ चलता रहे।
Saturday 26 May 2018
साईं का चेहरा...
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