सुबह सब ठीक था...
वो चहचहा कर उड़ी चुग्गा लेने
दिनभर भटकी, काली सांसें गटकी
लौटी फिर उसी चहचाहट के साथ लेकिन
देखा घरोंदा ज़मींदोज़ था, अंडे फूट गए थे
पीपल, पाखर, बरगद, सफेदा भी कट चुके थे
क्या हुआ?
चिड़िया पूछ रही है
हर ठीक सुबह की शाम इतनी काली क्यूं हो जाती है?
चिड़िया पूछ रही है
बहुत दूर से खुद को यहां तक खींच लाया हूं बहुत आगे के सफ़र तक जाने के लिए। जहां से निकले हैं और जहां तक अभी पहुंचे हैं वो एक असंभव सी यात्रा है। बीच-बीच में कई अच्छे पड़ाव मिले हैं जिनमें IIMC एक है बाकी जिंदगी के तजुर्बे बहुत कुछ सिखा ही रहे हैं। मेरी बाख़र एक कोशिश है उन पलों को समेटने की जो काफी कुछ हमें दे जाते हैं लेकिन हमारी जी जा चुकी जिंदगी में कभी शामिल नहीं हो पाते। बाकी सीखने, पढ़ने-लिखने का काम जारी है और चाहता हूं कि ये कभी खत्म न होने वाला सफ़र भी सभी से मोहब्बत के साथ चलता रहे।
Thursday 3 January 2019
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