Saturday 17 August 2019

नदी की आवाज़

शांति की चीख़ों भी तेज होती है नदी की आवाज़
तमाम दुखों से भी ज़्यादा होता है नदी का दुख
विस्थापन के रंज की स्थायी गवाह होती है नदी
कहीं से निकल कर किसी में समा जाने की क्षमता सिर्फ नदी में हो सकती है
क्योंकि नदियों ने देखे होते हैं सभ्यता के सारे दुख
मैं नदी नहीं हूं, हो भी नहीं सकता
नदी होने का मतलब रोते रहना बिना आसुंओं के बहते रहना है
मुझे नदी नहीं बनना, उसके रास्ते में पड़ा हुआ पत्थर बनना है
ताकि छूती रहे नदी मेरी आत्मा को और मैं उसके छूने से एक आकृति में ढल जाऊं
सुनता रहूं उसकी शांति की चीख़ों को
महसूस करता रहूं साल दर साल उसके आने को
मुझे नदी नहीं, उसके रास्ते में पड़ा पत्थर होना है....

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