Wednesday 25 February 2015

मैंं इश्क में शहर नहीं हो सकता...

देखो आजकल सब इश्क़मय हो रहे हैं। क्यों ना हम भी इश्क़मय हो जाएं। लेकिन...लेकिन मैं कैसे इश्क़ में हो सकता हूं। सब शहर में इश्क़ करके इश्क़ में शहर हो रहे हैं। मैं तो गांव का हूं।  तो क्या हुआ? क्या तुम मेरे इश्क़ में शहर नहीं हो सकते? नहीं। सब तो हो रहे हैं। मैं नहीं हो सकता। हां सरसों के खेत में बैठकर इश्क़ कर सकते हैं। खेत में मैं गांव हो जाऊंगा और तुम वहां से दिख रही उस बड़ी सी इमारत को देखकर शहर। नहीं। अच्छा तो मैं इन खेतों के पीछे से गुजर रहे बाईपास हाईवे पे चल रही गाय को देखकर और तुम उस कार को देखकर शहर हो जाना। छि! तुम कितने बुरे हो। क्या तुम मेरे लिए मेट्रो से दिख रहे खेत को देखकर गांव नहीं हो सकते? यार! तुम भी तो खेत से दिख रही इमारत को देखकर गांव नहीं हो रही। 
अच्छा झगड़ा नहीं करते,तुम इश्क़ में गांव रहो और मैं शहर रहती हूं। ओके? ओहके! चलो आओ एक भुट्टा खाते हैं। ये दोनों जगह होकर भी भुट्टे ही रहते हैं। 

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