Friday 8 May 2015

मतलब किडनी की बीमारी बुखार की गोली से ठीक कर रहे थे मेरे पापा...

पता है माधव जी, मेरे पिताजी इतनी बीमारी में भी इतने मजबूत थे कि किडनी-सिडनी सब खराब है फिर भी कह रहे हैं कि ला यार एक कॉम्बीफ्लेम दे दे, बुखार सा हो रहा है। मतलब किडनी की बीमारी बुखार की गोली से ठीक रहे थे। पर हमें पहले तो पता ही नहीं चला, साले डॉक्टरों ने बताया ही नहीं कि उनकी बॉडी में अंदर कुछ बचा ही नहीं है। पता चला तब तक तो बहुत देर हो गई थी। मेरे लिए भटूरे बनाते-बनाते अर्जुन अपने पिता की मौत की कहानी सुना रहा था आज सुबह।

अक्सर सुबह 10 बजे के आस-पास जोरों की भूख लगती है तो अर्जुन के छोले-भटूरे की रेहड़ी पर चला जाता था। 15-20 दिन से वो दिख नहीं रहा था, आज दिखा तो सिर पर छोटे-छोटे बाल उगे थे। मैंने पहले वाले अंदाज में ही पूछ लिया, मुझे तो लगा अर्जुन महाभारत लड़ने गया है। हां, भाई महाभारत ही लड़ रहा था, हार कर आया हूं। पिताजी खत्म हो गए। ओह! बस एक ही तस्वीर आंखों के सामने आई, मैं उनका पहला ग्राहक हुआ करता था और वही चेहरा भटूरे तलने के लिए कढ़ाई में तेल डालता था। कैसे? अरे! बॉडी में कुछ बचा ही नहीं था उनके। मतलब गुर्दे, किडनी सब खत्म...। हम थोड़ा लापरवाही में ले गए और डॉक्टर भी। एसएमएस (राजस्थान का सबसे बड़ा अस्पताल) में ले गए, एक्स-रे किया और कहा कि सब ठीक है, मैंने कहा कि डॉक्टर साब ये पेट में दर्द बताते हैं। फिर डॉक्टरों ने बड़ी जांचें की तो पता चला। आईसीयू में भर्ती किया, सबको लगा कि ठीक हो जाएंगे, डॉक्टरों को भी। लेकिन पेशाब रुक गया उनका, नली डाली तब पेशाब गए। लेकिन रात में सब गड़बड़ हो गया, डॉक्टर बोले, अस्पताल में रखोगे तो कुछ घंटे ज्यादा ही जी पाएंगे बस, हम उन्हें घर ले आए, डॉक्टरों ने 4 घंटे के लिए बोला था लेकिन 10घंटे जी गए मेरे पापा! सबसे आंख मिलाईं औऱ रात के 1.30 बजे चले गए। 17 अप्रैल को। हां, पर दुकान के व्यवहारियों ने बहुत हैल्प की, सारे के सारे पहुंचे थे, यार, ये नहीं पहुंचेंगे तो कौन पहुंचता फिर? शर्मिंदा सा होते हुए मैंने ये बोला था क्योंकि मैंने तो किसी से पूछने की कोशिश भी नहीं की कि अर्जुन क्यों नहीं आ रहा?

अर्जुन रेहड़ी पर अपना सामान सजाते हुए सब बता रहा था और मैं बाइक पर बैठे-बैठे पता नहीं कैसे सुन पा रहा था। तो यार! यहां तो ठीक दिखाई देते थे, हां माधव जी! उन्होंने हमें पता ही नहीं चलने दिया, 60 के ही थे बस। पर मेरे पापा थे बहुत मस्त और दिलेर आदमी। अर्जुन की आवाज में रुलाई नहीं थी पर उसका मन अस्पताल के उस बेड पर था। कढ़ाई साफ करते हुए बोल बैठा, पापा करते थे इसे साफ...।  9 बजे वो आते थे और 10बजे मैं। तब तक सब तैयार मिलता था मुझे, कढ़ाई साफ, 2 बाल्टियों में पानी, रेहड़ी के ऊपर तिरपाल सब तैयार, चाय भी। मेरे आते ही चाय पिलाते। मैं तो सिर्फ भटूरे निकालता था, आपके लिए। अाज थोड़ा लेट हो गया हूं आप आधे घंटे में आ जाइए।

अच्छा कहकर मैं वापस ऑफिस आ गया। एक घंटे बाद गया तब अर्जुन चाय बना रहा था, अपने और आसपास के रेहड़ी वालों के लिए। बगल की दुकान वाले भी एक अंकल आ गए, अर्जुन अपने पिता की मौत का अब मनोवैज्ञानिक विश्लेषण कर रहा था, उन शख्स से बोला (नाम भूल गया उनका) 15-20 साल बाद जब आप ऊपर जाएं तो पता करना आदमी मरके कहां जाता है? इस सवाल में शायद अर्जुन अपने पिता को ढूंढ़ने की कोशिश कर रहा था। वो अंकल दार्शनिक होकर बोल रहे थे, ये पता चल जाए तो आदमी वहां भी पहुंच जाए, धंधा करने। अंकल हंस दिए, मैं भी पर अर्जुन ने इस बात पर क्या पता की तरह हाथ घुमाया। पहले पुड़ी जैसे दो भटूरे निकाले, एक भगवान को चढ़ाया औऱ दूसरा भट्टी को, पहले की तरह ही फिर मुझे थाली दे दी।

पहले की तरह ही अर्जुन सब काम कर रहा था, वैसी ही बात, वैसा ही स्वाद और वैसा ही व्यवहार पर अपनी कमी वो पैसों की पेटी में लगी अपने पिता की पासपोर्ट साइट फोटो में पूरी कर रहा था, पैसे देते वक्त वो फोटो मुझे दिखाई दिया...

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