Monday 18 May 2015

'उस्ताद' बाघ के नाम सॉरी वाला ख़त

प्यारे उस्ताद! सबसे पहले सॉरी। तुम्हारी इस हालत के लिए! मैं भी पढ़ रहा हूँ 4 दिन से सब...इतना ही समझा कि तुम बेक़सूर हो। तुम्हारा इतिहास भी पढ़ने की कोशिश की तो पता चला कि तुम थोड़े शरारती हो लेकिन बाघों की इस शरारत को हम इंसान 'हिंसा' कहते हैं और तुम्हारे पानी पीने के साधारण काम को तुम्हारी 'अदा'। क्योंकि तुम्हारी इस ‛अदा' के दरअसल हमसे पैसे वसूले जाते हैं।

खैर! मामला इतना सा है कि रणथंभौर में तुम्हारे 40000 वर्ग किलोमीटर के घर में इंसान घुसे और तुमने अपना घर बचाने के लिए अपनी शरारत का इस्तेमाल किया और इसमें उसकी मौत हो गई, ये शरारत तुम 4 बार कर चुके हो। लेकिन 'शरारती उस्ताद' शायद तुम्हें नहीं पता 'गांधी' के इस देश में ऐसी शरारतें स्वीकार नहीं हैं। तुम्हें सज़ा दी जाएगी... और तुम्हें सज़ा दी भी गयी है। आखिर सरकारें बनी ही क्यों हैं? तुम्हें सज़ा मिली है कि अब तुम्हारा घर 40000 वर्ग किलोमीटर से घटा कर 10000 वर्ग किलोमीटर कर दिया गया है जिसमें तुम शिफ्ट किए जा चुके हो। आज पढ़ा कि तुमने कुछ खाया नहीं, जिसका एक पल में घर उजाड़ दिया गया हो उसके गले निवाला उतर भी कैसे सकता है भला!

रणथम्भोर से उदयपुर के सज्जनगढ़ पार्क तक का बेहोशी का सफ़र भले तुम्हें याद ना हो लेकिन उस बेहोशी में तुम्हें 'नूर' का ख्याल तो आया ही होगा। वही नूर जो अपने दो शावकों के साथ अक्सर तुम्हारे साथ दिखती थी। शनिवार सुबह भी तुमने एक साथ शिकार खाया था। उस्ताद शायद तुम्हें पता नहीं लेकिन वो रविवार से तुम्हें ढूंढ रही है। जहां से तुम्हें बेहोश कर सज्जनगढ़ ले जाया गया वो मगरदेह नाम की उस जगह भी गई, काफी देर तक कुछ सूंघती रही पर तुम्हारा कोई सुराग नहीं लगा पाई वो बेचारी!

तुम्हें एक राज़ की बात बता दूं 'उस्ताद'? तुम बहुत अच्छी किस्मत लेकर पैदा हुए कि कोई सरकारी गोली तुम्हारी खोपड़ी में नहीं घुसी!! क्योंकि तुम्हें खूंखार घोषित किया जा चुका है।

बस आश्चर्य तो ये है कि जिसे तुम्हारी सुरक्षा का ज़िम्मा दिया गया वो 'मंत्री' कह रहे हैं कि कुछ 'टेक्निकल' कारण हैं जिनकी वजह से तुम्हें वहां शिफ्ट किया गया है और वो 'टेक्निकल कारण' मुझसे ज्यादा तुम जानते हो क्योंकि तुम अब तक वहीँ 'टूरिस्ट टेररिज्म' की कैपिटल बन चुके रणथंभौर में रहे हो। तुमने घर बचाने की कोशिश क्या की उन्होंने तुम्हारा घर ही उजाड़ दिया, खासकर उन्होंने जो कभी अपना 'घर' भी न संभाल सके।

खैर! अब तुम उदयपुर के सज्जनगढ़ पार्क में शिफ्ट हो चुके हो,छोटे से घर में। वहां इन बेवफा लोगों ने किसी 'दामिनी' को तुम्हारे लिए छोड़ा हुआ है,कोशिश करना वहां के जैसे होने की क्योंकि तुम्हारे पास कोई आप्शन भी नहीं है शायद! और हां मेरी सॉरी एक्सेप्ट मत करना प्लीज! वरना हम लोग तेरी नूर को भी कहीं दूर भेजने में वक़्त नहीं लगाएंगे। हां, हो सके तो किसी जंगल के कोर्ट में अपील कर दो शायद तुम्हें न्याय मिले!





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