Monday 1 February 2016

एक उजड़े 'विस्थापित' गांव का हमारे नाम खुला ख़त

आह भरी नमस्कार! मैं उजड़ा हुआ हूं, बेहद परेशान और दरकिनार किया हुआ, अपनों का सताया और भुलाया हुआ भी। उनकी टूटी-फूटी 'बाखरों' का बोझ मैं सहन नहीं कर पा रहा जो मुझे छोड़कर जा चुके हैं, मतलबी लोग! अब बर्दाश्त नहीं होता ये सन्नाटा, दिन में भी झींगुरों की आवाजें और इन टूटी छतों के कोने में बने टूटे हुए चूल्हों में दबी राख!

 बर्दाश्त नहीं होता अब, पैसों के लिए परदेस निकल गए बेटों के 80 साल के मां-बाप की कराह, खाट में ही सब कुछ हो जाना और होते ही रहने के बाद भी उनकी औलाद को पुकार और मेरा उन्हें कराहते हुए सुनना, फिर मैं रोता हूं अपनी बेबसी पर, कहने की कोशिश करता हूं  उन हवेलियों  की दीवारों से लेकिन अब वो भी 'पत्थर' हो गई हैं उन जा चुके लोगों की तरह।

कोई नहीं सुनता तो अपने अतीत में लौट जाता हूं। उन मंदिर की घंटियों में जो अब नहीं बजतीं। लौट जाता हूं परम सागर कुएं की दीवारों से टकराते हुए कलश की छप-छप की आवाजों में जो अब 4 साल से बंद है क्योंकि बारिश नहीं हुई। अपनी उंगलियां फेरता हूं घाटों में रस्सी से बने निशानों में और वापस आ जाता हूं उनके भी आसुंओं से लबरेज़ गीली उंगलियां लिए हुए। चढ़ कर वापस आ जाता हूं उन खरंजों से जो कभी मेरे अंदर तक आने के लिए बने थे।

फिर जाता हूं छोड़कर जा चुके लोगों के खेतों में जहां कुएं भी हैं,पोखर भी और  इंजन भी पर वो भी सब कराह रहे हैं मेरी तरह बिलकुल सूखे और नाउम्मीदगी से भरे हुए। अब उनमें सरसों भी नहीं होती और गेंहू भी नहीं क्योंकि 4 साल से अकाल है लेकिन मैं बीसियों साल से अकाल का मारा हूं। मेरे ही सीने पर सब परेशान हैं मेरी ही तरह बिलकुल अकेले और कराहते हुए। शाम तक ऐसे ही घूमता रहता हूं उदास।
आसपास के गांवों में भी जाता हूं उनकी दास्तां भी मुझसे कुछ अलग नहीं। थक कर आ बैठता हूं किसी टूटी हुई पाटोर (छत) के चटके हुए छज्जे पर। उन्हें देखता हुआ जो अभी बचे हुए हैं कतार के आखिरी, अंतिम से लोग!

सिर्फ दिखते हैं तो बुझे हुए चूल्हे, बिना धूल की गौधूली, शाम को कभी आबाद रहने वाले खाली चबूतरे, माथे पर विकास के नाम लिए आए कभी-कभार टिमटिमाते लट्टू, आंगन में फैला घुटनों तक कचरा और तालों से कसे हुए टूटे हुए दरवाज़े।
दरअसल, विस्थापित सिर्फ लोग नहीं हुए मैं भी हुआ हूं, उनसे ज्यादा जो मुझे याद करने की झूठी कहानियां गढ़ते हैं आपस में मिलने पर। मैं उजड़ा हुआ हूं, दरकिनार किया हुआ और कराहता हुआ...

3 comments:

  1. Vo yad Krne ki jhoothi khaniya nhi Sach m vo bhut yad aata h mere bachapan ka aangan

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  2. बहुत अच्छे शर्मा जी !! लिखते रहें .....

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    1. शुक्रिया डॉली जी, यूं ही हौसला बढ़ाती रहें!

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