Tuesday 26 April 2016

सचिन तेंदुलकर के नाम मेरा पहला खुला खत

तुम सचमुच लाजवाब हो, दुनिया में तुम्हीं हो, जिसकी बैटिंग के वक्त मेरी मां और बहन सीरियल देखना छोड़ देती थी फिर अगले दिन रिपीट टेलीकास्ट देखती थीं। मुझे याद है, तुम 98 पर खेल रहे थे तभी मैंने कहा कि मम्मी... सचिन 99 पर आउट होगा। ऐसा ही हुआ, खाना खाती हुई मां ने मेरे सिर पर चपेट मारी थी और तुम्हारे आउट होने का पूरा दोष मुझ पर डाल दिया। वो सिर्फ तुम ही थे जिसकी वजह से मेरे 70 साल के दादाजी किक्रेट देखते थे, किसी दोपहर खेत से आते और मैच चल रहा होता और तुम खेल रहे होते तो बोलते, जे का सचिन खेल रौ ए? और खुद भी देखने लग जाते। तुम जब अच्छा नहीं खेलते थे तो चार गाली भी पड़ती थी। मेरी भजन-पूजा वाली दादी की माला भी तुम्हारी बैटिंग के वक्त रुक जाती इसलिए तुम भगवान हुए। तुम ही एकमात्र खिलाड़ी हो जिसका नाम मेरे गांव में बकरी चराने वाले मुश्तू बाबा भी जानते हैं। मुझे याद है कि गांव में बड़े-बुजुर्ग लोग सर्दियों में अलाव सेकते हुए अमेरिका, इंग्लैंड की अधूरी जानकारी के साथ चर्चा करते फिर कुछ बात नहीं बचती थी तो बातचीत राजनीति से खेल पर आकर रुकती। तुम्हारी भी बातें होती पर अंत में बात राजनेताओं, अभिनेताओं और खिलाड़ियों पर होने वाले पैसे पर खत्म होती थी। मैं अपने बचपन और तुम्हारी किक्रेट में जवानी की बात कर रहा हूं। तुमसे मैं कभी नहीं मिला पर अपना जुड़ाव इसलिए महसूस कर रहा हूं कि तुम्हारे लिए मां से छोटे दिमाग (सिर का पिछला हिस्सा) पर लप्पड़ खाया है मैंने!
अब तुम किक्रेट खेलने से इस्तीफा दे रहे हो, अच्छी बात है लेकिन सचिन तुम खेलते रहोगे, मेरी मां के फेवरेट सीरियल आने के टाइम में, दादाजी के साथ खेत में, दादी की भजन माला में। मुश्तू बाबा की बकरियों में, अलाव में जलते हुए आखिरी कोयले पर हाथ सेकते उन बुजुर्गों की ‘इंटरनेशनल’ बातों में। तुम खेलते रहोगे तब तक, जब तक वो लोग जिन्दा रहेंगे जिन्होंने तुम्हें खेलते हुए देखा है।
तुम्हारा
माधव

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