कई लोगों ने मुझसे पूछा है कि बाखर का मतलब क्या है और मेरे ब्लॉग का नाम मेरी बाखर क्यों है? हालांकि जब मैंने ये ब्लॉग शुरू किया तब भी मैंने लिखा था कि ब्लॉग का नाम ये क्यों है। आज थोड़ा सा फिर से लिख रहा हूं। इस गांव को देखकर ही ब्लॉग का नाम ये रखा था। कई महीनों बाद ये फोटो खींचा। इस फोटो को मैं ढूंढ़ भी रहा था और कल अचानक लैपटॉप के एक फोल्डर में यह मिल गया।
देखते-देखते विचार आया कि एक गांव में क्या हो कि लोग वहां आराम से रह सकें। हम अर्द्ध शहरी हो चुके लोगों के अवचेतन में गांव की तस्वीर क्या है? यही कि गांव में चारों तरफ हरियाली है। एक तरफ नदी बह रही है, दूसरी ओर खेत लहलहा रहे हैं। पगडंडियां हैं। सभी लोग एक-दूसरे की मदद से सौहार्दपूर्वक रहते हैं और वहां दूध-घी की कमी नहीं है। कुछ-कुछ ऐसी छवि जो 50-60 के दशक से फिल्मों ने बना दी है।
ये गांव आज भी कुछ ऐसा ही है जैसा आपके-हमारे अवचेतन गांवों को लेकर छवि है। किनारे से बह रही नदी है। लहलहा रहे खेत भी हैं। मवेशी भी। विकास को दिखाता नदी के ऊपर बना हुआ पुल है, सफेद दुपट्टा ओढे एकदम काली चमचमाती सड़क है। लेकिन नहीं हैं तो बस इस गांव में रहने के लिए लोग। बरसों पहले ही गांव खाली हो चुका है। पूरा गांव छोड़कर लोग दूसरे कस्बे में जा बसे हैं। एकाध सरकारी नौकरी में गए तो अधिकतर ने ऐसे ही काम-धंधों में जिंदगी गुजार दी।
अब ये गांव वीरान है, एकदम सुनसान। दिन में भी झींगुरों की आवाजें सुनाई देती हैं। फोटो में जो कुछ दिख रहा है यही वो बाखर हैं जो अब टूट चुकी हैं। कभी मिट्टी के तेल के चलने वाले लैंप से भी जगमग रहने वाले इस गांव में आज बिजली का छोटा सब-स्टेशन है फिर भी यहां अंधेरा है। पीने के पानी के लिए बड़ी टंकी है लेकिन इसका फायदा कई दूसरे गांव ले रहे हैं। पक्की सड़क है लेकिन गांव में कोई नहीं रुकता। ये कच्चे घर तो क्या 30 साल में ही पक्की हवेलियां भी टूट-फूट कर भूतहा सी बन गईं। कितने निष्ठुर से हो गए हैं वो लोग जिनका बचपन इन बाखरों में गुजरा था। कभी मुड़कर भी नहीं देखते इनकी तरफ। ये इंतजार में तकती रहती हैं और एक दिन थककर भरभरा कर गिर पड़ती हैं अपने अतीत को दबाते हुए।
दिल दुखी तो होता है लेकिन गुजरे वक्त को सिर्फ याद करना चाहिए उसमें रहना नहीं चाहिए। ये बात गुलजार साहब ने कही थी इस बार जयपुर लिटरेचर फेस्टिवल में। हां यह सही है कि अब इन बाखरों में पहले जैसी चहल-पहल कभी नहीं हो पाएगी लेकिन जब इन्हें कोई मेरे जैसा इंसान देखता है तो इन्हें खुद में समा लेने की कोशिश करता है। मैंने भी वही किया है इसे अपने ब्लॉग का नाम देकर।
Fitrat Kaha Badalti he, Zameer bech- khane wale insaan ki...
ReplyDeleteHaan bhai
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