Monday 2 October 2017

गानों का सामाजिक वितरण क्या है?

#यात्रा
वैसे गाने सुनना और पसंद/ नापसंद निजी मसला है लेकिन जब कभी मैं ऐसे गाने सुनता हूं जो पहले नहीं सुने तो सोचता हूं कि गानों का सामाजिक वर्गीकरण और वितरण कैसे हुआ होगा? कैसे कोई गाना हम तक पहुंचा होगा और कैसे कोई हमारी पहुंच से दूर हुआ होगा। कोई गाना जो हम तक नहीं पहुंचा वो किसी ड्राइवर के पास किस तरह पहुंचा होगा? सुनिए, दिलवाले जानी ओ.... आकर मेरा सबकुछ चुरा ले एक मिनट की बात है...।
सलीम और अनारकली की अधिकतर बातें मुग़ले आज़म के ज़रिए हम तक शानदार स्क्रिप्ट, जानदार डायलॉग और फ़िल्म के साहित्यिक/ ऐतिहासिक बैकग्राउंड से पहुंची हैं लेकिन सड़क पर चलने वाले एक तबके में ये किस तरह जा बैठे, सुनिए। सलीम- अनारकली... तेरे सर की कसम, चाहूंगा तुझे जब तक है दम। अनारकली का क्रांतिकारी जवाब- कोई सितमगर अब ना आएगा, दीवारों में अब ना चुन पाएगा। सलीम मेरे...
इस बात पर कोई विश्लेषण या शोध हुआ है क्या? मुझे नहीं पता लेकिन अगर नहीं हुआ हो तो होना चाहिए कि किसी गाने का समाज के अंदर बने समाजों में पहुंच कैसे होती है, प्रक्रिया क्या है उसकी?
एक और सुनें- तूने किया था वादा, अब ना बदल इरादा, वादे से मुकर जाऊं तू हां कर दे, मेरे सीने से लग जा तू ठां कर के...।
वैसे बापू को कौनसा गाना पसंद था?

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