Tuesday 6 January 2015

पराठा कच्चा है...

भाईसाहब ये पराठा अभी कच्चा है, थोड़ा सा और सेकिए, जबाव भी मिल गया,लेना है तो लो वरना कोई बात नहीं और वैसे भी पेट में जाकर तो सब पकना ही है। मन मसोसकर आखिर वो पराठा लेना ही पड़ा क्योंकि मजबूरी है, सुबह की भूख शांत जो करनी है,उस लड़के को जिसे अभी कॉलेज भी जाना है। चूँकि मैं भी वहीं खड़ा था और ये चंचल पत्रकार मन से रहा नहीं गया सो बोल दिया,अगर पेट में जाकर पकना है तो आटा ही क्यों नहीं खिला देते सर! पराठे वाले भाईसाहब ज़रा घूरकर देखे, लेकिन स्थिति बिगड़ने से पहले मैंने संभाल ली और एक पराठे का आर्डर दे दिया, कच्चा ही सही पर मेरी भी हालत उस लड़के जैसी ही थी।
उधर पराठा बन रहा था, इधर इंटरव्यू शुरू! मैंने पूछा,कहते हैं ग्राहक भगवान का रूप होता है, तो फिर भगवान की इतनी सी बात मानने में क्या हर्ज़? पराठा एक्सपर्ट विष्णु ने जवाब दिया, अगर हर भगवान की बात मानने लगे तो भगवान के इस भक्त की हालत खस्ता हो जाएगी। विष्णु जी का जवाब तो अजीब था और इस जवाब ने बहुत सारे सवाल मेरे ज़ेहन में और पैदा कर दिए। बातचीत के लहज़े से पूछा, क्या फायदा होता है तुम्हें? विष्णु जी बोले तुम तो पत्रकारों की तरह सवाल किए जा रहे हो यार, उन्होंने जवाब दिया,फायदा तो क्या बस गैस की थोड़ी सी बचत और थोड़ी जल्दी हो जाती है। जल्दी के चक्कर में सेहत से खिलवाड़ के सवाल पर कोई जवाब नहीं दे पाए विष्णु जी।
खैर! मेरा पराठा बनकर तैयार हो चुका था, गरमागरम कटवारिया सराय का पराठा! इसी को खाकर पराठों वाली गली के पराठों का अनुभव कर रहा था मैं। खाते-खाते पूछ लिया,फिर भी इतनी डिमांड क्यों है?ये जवाब सही और पूरी ईमानदारी से दिया गया। देखो यार! दिल्ली में हज़ारों बच्चे हर साल पढ़ने आते हैं, कुछ महीनों के लिए या ज्यादा से ज्यादा सालभर के लिए। उन्हें रहने और खाने का इंतजाम सबसे पहले करना पड़ता है। रहने के लिए पांच से छह हजार रूपए में रूम मिल जाता है, 8x8 का और सस्ता खाना हम उपलब्ध करा ही देते हैं, सिर्फ दस रुपए का पराठा! घर से बाहर, घर जैसा खाना! और हर कोई बड़े होटल पर जाकर तो नहीं खा सकता न!
मुझे अब कच्चे पराठों की वजह समझ में आई कि अगर आप मजबूर हैं तो ये कमी किसी के धंधे में चार चाँद लगा सकती है। वैसे मेरा पराठा उस लड़के से ठीक बनाया विष्णु जी ने, शायद मेरे सवाल-जवाब कम कर गए। पानी पिया, दस रुपए देते वक़्त मैंने कहा, वैसे मैं पत्रकार बिरादरी से ही हूं। विष्णु जी ने हल्की सी मुस्कराहट के साथ पैसे लिए और मैं चल पड़ा कॉलेज की तरफ, पत्रकारिता पढ़ने!

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