Saturday 21 March 2015

बिरयानी तो झूठ था...

तो कसाब ने कभी जेल में बंद रहते न बिरयानी खाई और न ही उसने इसकी कभी डिमांड रखी थी। बिरयानी वाली बात तो देश में कसाब के प्रति बन रही सहानुभूति को रोकने के लिए मैंने मीडिया के आगे यूं ही कह दी और यह बड़ी खबर बनी। यहां तक कि उस समय के विपक्ष के नेता देवेन्द्र फड़नबीस ने भी इस बात की जांच के लिए जेल का दौरा किया था। कसाब नाटक भी करता था। जैसा उसने रक्षाबंधन वाले दिन कोर्ट में रो कर किया।  उसने मुझसे पूछा कि 'बादशाह तेरे हाथ में ये लाल धागा काहे को बंधा है'?


ये सारी बातें शुक्रवार को  सरकारी वकील उज्ज्वल निकम ने जयपुर में कही थीं। हालांकि मुझे इस बात पर ज़रा भी आश्चर्य नहीं हुआ कि उसने कभी बिरयानी मांगी भी या नहीं। शुरू से इस बात में कभी दिलचस्पी भी नहीं थी कि वो क्या खाता है और क्या पीता होगा। लेकिन अब सबके सामने आ गया कि यह महज़ झूठी और जाूनबूझकर फैलाई गई जानकारी थी। यह झूठ राष्ट्रीय खबर बनी औऱ कई राजनेताओं ने इसे अपने भाषणों में शामिल भी किया खासकर भाजपा ने। खुद मोदी ने भी इस झूठ को अपने चुनावी भाषणों में इसे आतंक के विरुद्ध इस्तेमाल किया।


तो पहली बात ये कि निकम ने इसे अब सार्वजनिक क्यों किया? निकम कसाब को फांसी होने के बाद भी ये तुरंत बता सकते थे लेकिन उन्होंने एेसा नहीं किया।


दूसरा, देश का राष्ट्रीय मीडिया। निकम के अनुसार यह बात  मीडिया को काल्पनिक बातों में उलझाने की रणनीति का हिस्सा थीं। क्योंकि मीडिया में कसाब के लिए सहानुभूति पैदा करने वाली खबरें चलाई थीं और उसे बच्चा साबित किया जा रहा था। कोर्ट में उसके आंसू पोंछने के नाटक को मीडिया ने दिखाया कि बहन की याद में कसाब कोर्ट में रोने लगा। खैर! ये एक आतंकवादी से जुड़ा झूठ है इसलिए सरकार भी इसे देशहित में सही कह देगी और जनता जनार्दन का कुछ हिस्सा भी।


लेकिन इससे ये भी साफ हो गया कि  हमारे मीडिया में कोई भी बात कितनी आसानी से प्लांट कराई जा सकती है और बड़े-बड़े धुरंधर पत्रकार कितनी आसानी से उन पर यकीन कर एक झूठ को राष्ट्रीय बहस का मुद्दा बना देते हैं। कितनी स्टोरी मीडिया में प्लांट करवाई जाती होंगी सिर्फ  झूठ पर? हम जब पत्रकारिता 'पढ़' रहे थे तब यह बताया गया कि किसी की बात को ज्यों का त्यों नहीं दिखाया या छापा जाना चाहिए। पहले उसकी पूरी जांच-पड़ताल की जानी चाहिए। लेकिन यहां  कुछ नहीं हुआ।


निकम की इस बात से साफ हो गया कि हम जो भी देख-पढ़ रहे हैं वो मिलावटी तो है। इतना ही नहीं मिलावट का प्रतिशत ना तो अखबार का संपादक  जानता है औऱ न ही वो टीवी चैनल जो इस मिलावट भरी खबर पर प्राइम टाइम कर रहा है। मतलब पूरा मामला एकतरफा है।


प्रख्यात पत्रकार जॉन पिल्गर ने इस पर शिकागो में एक व्याख्यान में मीडिया में प्रोपेगेंडा, बिकी हुई खबरों पर लंबा भाषण दिया था। उसमें बताया था कि अमेरिका के अखबार के एक झूठ ने किस तरह से इराक में युद्ध करवा दिया और वहां के हालात सबके सामने हैं। (लेख को आप यहां पढ़ सकते हैं।--http://hashiya.blogspot.in/2010/02/blog-post_15.html)


 इसलिए आप वही पढ़िए जो आपके काम का है। अपनी जानकारी लेने के माध्यमों को आप एक या दो तक सीमित मत रखिए। मीडिया में जो भी दिखाया और लिखा जा रहा है हो सकता है वो पूरा सच ना हो। इसलिए बी अवेयर!

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