Friday 5 June 2015

लंगोट से टैटू तक पहुंची भक्ति!

क्या धर्म या उसके प्रतीकों को लोगों को हिसाब से बदलते रहना चाहिए, उसकी पद्दतियां और पूजा-पाठ के तरीके भी समय के हिसाब से बदलने चाहिए? क्या भगवान को सिर्फ उन्हीं पारंपरिक तरीके से खोजा जा सकता है? एेसे कई सवाल हैं जो अक्सर मेरे दिमाग में आते रहते हैं, तब ज्यादा, जब नए लोग उसे अपनाने की कोशिश करें और उन्हें फिर उस धर्म के हिसाब से ही कपड़े पहनने पड़ें या सारे काम पुराने तरीके से ही करने के बिना लिखे नियमों के हिसाब से करना पड़े। जब देखता हूं कि वृंदावन के इस्कॉन मंदिर में आकर भक्ति में रमने वाले विदेशी लोग अपना सारा कल्चर छोड़कर उसी पारंपरिक लिवास में आ जाते हैं या अपने ही देश में कई युवा भी उसी तरीके से किसी सम्प्रदाय में शामिल होते हैं तो मन सवाल करता है कि क्या ये जिस भगवान की खोज करने निकले हैं उसी लिवास और कल्चर में रहकर नहीं कर सकते? क्या युवा अपने स्टेटस को मैंटेन करते हुए पूजा नहीं कर सकते? 

गुरूवार को इस बात का किसी हद तक जवाब मिल गया, हां कर सकते हैं। भक्ति लंगोट में या हिमालय पर ही जाकर ही नहीं की जा सकती बल्कि अपने स्टेटस को साथ लेकर और फैशन को मैंटेन करते हुए भी की जा सकती है। यो-यो टाइप बाल और लगभग पूरे बदन पर टैटू गुदवाया हुआ वो शख्स पहली नज़र में गिटारिस्ट ही लगा लेकिन जब ऊपर से नीचे तक गौर से देखा तो वो उन सब पारंपरिक लोगों से कम नहीं था लेकिन था कुछ अलग। जयपुर के गोविंद देव जी मंदिर में उन लड़कों की पूरी टोली उसी अंदाज में थी जिस अंदाज में वो शख्स था। हाथ में गुप्ती (जिसमें माला फेरी जाती है), गले में राम नामी गमछे के साथ-साथ नए जमाने के टैटू,बड़ी सी दाढ़ी और बाल एेसे कि अगर हम कटा लें तो घर निकाला मिल जाए! महंगी से जींस और टी-शर्ट, उस शख्स के बाकी दोस्त भी लगभग इसी अंदाज में थे।

उन्हें मंदिर में टहलते देखा तो उनके पीछे हो लिया, जहां वो जाकर बैठे उनके बगल में जाकर बैठ गया लेकिन वो जनाब गुप्ती में हाथ डाले माला फेर रहे थे औऱ मेरी हिम्मत नहीं हो रही थी कि किस तरह से बात शुरू करूं। काफी देर बाद हिम्मत जुटाई और पूछ लिया, आप जयपुर से ही हैं (क्योंकि उनके गेटअप से लग नहीं रहा था), जवाब मिला, हां, इसी सवाल के बाद तीन बार मैंने माफी भी मांग ली, डिस्ट्रब किया हो तो सॉरी! नाम पूछा और एक फोटो लेने की मंजूरी मांगी, उन्होंने सिर्फ सिर हिलाया और मैंने झट से ये फोटो क्लिक कर ली। 



फोन नंबर भी मांग लिए, सेव करने के लिए नाम पूछा तो नाम मिला, करन। करन 'भगत' के नाम से नंबर भी सेव कर लिया, थैंक्स बोला और चला आया। शुक्रवार को करन को फोन किया और वही पूछा जो ऊपर लिखा है क्योंकि मुझे लगा कि करन से बेहतर जवाब शायद ही कोई दे पाए। उन्होंने एक ही लाइन में जवाब दिया, 'मैं एक आर्टिस्ट हूं, खुद का टैटू स्टूडियो है और भक्ति का माहौल बचपन से घर में रहा है। इसलिए यही लुक मुझे शूट करता है। मुझे ये पसंद है'।

इसके बाद करन के फेसबुक पेज पर भी गया, हर दूसरे यो-यो टाइप स्टाइल के फोटो के बाद राधे-राधे और हरे-कृष्णा की पोस्ट देखने को मिली। ज्यादा आश्चर्य तब नहीं होता जब कोई विदेश का आदमी इस लुक में दिखाई देता, वो अक्सर दिखाई देते हैं, जटा और टैटू के साथ हाथ में गुप्ती लिए लेकिन जब करन को देखा तो लगा कि कुछ तो बदल रहा है। 


करन के फेसबुक पेज से ली गई तस्वीर

मेरे अलावा शायद और भी बहुत लोग थे उस जगह जो उन्हें अजीब नज़र से देख रहे थे। लेकिन किसी की नज़रें वो नहीं कह रही थीं जो अक्सर एेसा हो जाने पर तथाकथित धार्मिक ठेकेदार कहते फिरते हैं। जींस को संस्कृति और धर्म के ह्रास की वजह बताते फिरते हैं और भी पता नहीं क्या-क्या...यही लोग ये भी कहते हैं कि हिंदु धर्म सहिष्णु है और जींस पहन लेने पर धर्म का नाश भी करवा देते हैं।

करन जैसे हो सकता है सैंकड़ों-हजारों लोग और हों, अच्छा ही है, होने भी चाहिए। धर्म वही जो लोगों को अपनी सहुलियत से जीने की आजादी देता हो, अगर एेसा ना हो तो फिर वो ढोना पड़ेगा और एेसे ऊल-जुलूल बयान देने वाले शायद यही चाहते हैं...।

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