Wednesday 24 June 2015

मनाली में उस रोज की वो खूबसूरत सुबह

आपको कैसा लगता है यहां? मतलब, आप नेपाल से हैं तो मनाली में क्या ऑब्ज़र्ब किया आपने?
पता नहीं क्यों पर मुझे लगता है कि यहां लोग हर वक़्त कुछ ढूंढ़ रहे हैं, क्या है जो उन्हें नहीं मिल रहा, मैं नहीं जानता क्या, पर हज़ारों लोग तभी यहां आ रहे हैं। हमारे लिए खाना बनाते-2 तारा (कैंप में कुक) मनाली में खुद का जीया हुआ हमें बता रहे थे।

कैम्प से कहीं दूर उस ऊंचाई पर
 तारा की बात 200% सही। सब यहां कुछ ढूंढ़ने आ रहे हैं, अपने-अपने हिसाब से लेकर जा रहे हैं लगभग एकसा।
ये सब लिखते-2 पहाड़ के पीछे से वो निकल आया जिसका 1 घंटे से इंतज़ार कर रहा था। पता ही नहीं चला,चला तब जब मेरे सर की परछाईं बगल वाली छत पर दिखने लगी।

कांपते हाथों में गुनगुनाहट सिर में होकर घुसी तो हाथों ने कांपना बंद कर दिया है। टेबल से ओस पानी बन टपकने लगी है, सामने के पहाड़ का झरना अब और सफ़ेद हो गया है, व्यास नदी का सुर थोड़ा धीमा हो गया है और ये तितली भी मस्तानी सी होकर गमले में उगे इस फूल पर आ बैठी है, ठीक पीछे वाली रात में जिए वो पल कैंडल लाइट डिनर वाली टेबल और बोन फायर की राख के साथ सबूत की तरह दिख रहे हैं।

इनके बीच में ही बहती है व्यास नदी
 तारा की बनाई अच्छी वाली एक चाय गटक चुका हूं। पहाड़ी क्यूट बच्चे स्कूल के लिए भी निकल चुके हैं,एक छोटी बच्ची ने एक छोटे बच्चे को पीठ पर लादा हुआ है और दोनों का बैग एक और छोटी बच्ची ने संभाला हुआ है। तरुण (कैंप का मालिक) की मां ने उसी जमी हुई सुबह में ही हमें गांव में जाने का रास्ता बता दिया है, पहाड़ों की ज़िन्दगी का अनुभव अपने चौकोर चेहरे में बन आईं झुर्रियों में समेटे हुए जब उन्होंने गलत रास्ते से हमें ऊपर चढ़ते हुए देखा तो सही वाले 2 रास्ते बता कर गयीं, ये भी कि ऊपर गांव में मंदिर भी है।

ये झरना जो उस छत से उठने ही नहीं देता
 मनाली में चौथे दिन की ये सुबह सामने कई सौ फ़ीट से गिर रहे झरने, लाखों देवदार के पेड़, इठलाती सी एक नज़ाकत में बहती हुई व्यास और गमले के फूल पर मंडराती उस तितली की तरह बेहद खूबसूरत है।

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