सिलेंडर ख़त्म हो गया है भैया, खाना पैक करवा लाना। घर से ऐसा फ़ोन हर तीसरे महीने अक्सर आ जाता है। आज भी वही दिन था और मैं भी हर बार की तरह उसी शर्मा होटल पर मिक्स वेज और रोटी पैक करवाने पहुंचा। देखा, होटल के बाहर लगी टेबल पर लंबा और मैल से सने हुए सफ़ेद धोती-कुर्ता पहने एक बूढ़ा खाना खा रहा है।
आर्डर देकर मैं बाहर इंतज़ार करने लगा। लेकिन मेरी निगाह उस बूढ़े पर फिर से जा टिकी। अरे! ये तो वही है जो हर दिन इसी सड़क हर किसी के आगे हाथ फैलाता है। ढावे पर उसे खाता देख आश्चर्य हुआ, इसकी हैसियत तो नहीं है 60-70 रुपए देने की फिर भी होटल अफोर्ड कर रहा है। दिमाग में तमाम बातें एक साथ आने लगीं। एक पुलिस वाले ने कहा था बहुत पहले, माधव जी इनका गिरोह चलता है, वही खाना-पीना और रहना देते हैं, दिनभर की कमाई वो इनसे छीन लेते हैं। मैं अक्सर सड़क पर किसी को पैसे नहीं देता पर कभी कोई बेबस सी औरत मासूम सा बच्चा लेकर हाथ फैलाती है तो शर्म के मारे कभी दे भी देता हूं।
इसे ढाबे पर खाता देख मैं तय कर चुका था कि आज के बाद मैं वो शर्म भी नहीं करूंगा और भी ना जाने क्या-क्या दिमाग में चलने लगा। वो कुर्सी पर पालती मार दाल फ्राई में तंदूरी रोटी गला-गला कर खाता रहा। मेरा खाना भी पैक हो गया और उसका खाना पूरा हुआ। मैंने पैसे दिए और एक हल्की सी आवाज सुनी। उस बूढ़े और काउंटर के बीच में मैं खड़ा था और वो आवाज उसके हाथ में खनकते सिक्कों की थी। बैठे हुए गले से उसने मुझे कहा, देना! मैं स्तब्ध था। मेरा हाथ बढ़ा, उसके हाथ से वो सिक्के लिये, कुछ पल मेरे हाथ में खनके वो सिक्के मैंने काउंटर पर रख दिए। 5 सेकंड के इस समय में कुछ पल वो दाता था और मैं उसके आगे हाथ फैलाता हुआ भिखारी!
लड़के ने 1-2 रुपए के सिक्के गिने, 20 रुपए थे। उसने थोड़ी ऊंची आवाज में कहा, और दे। बूढ़े ने बाएं हाथ में छुपाए सिक्के दाएं हाथ में लिए और फिर से मुझे पकड़ा दिए। मैंने फिर उन्हें काउंटर पर रख दिया।लड़का फिर बोला, 5 रुपए की एक रोटी है, तूने 3 खाई तो 15 हुए और 30 रुपए की दाल है। 45 रुपए हुए टोटल समझा। ये 30 ही हैं। बूढ़े ने उस लड़के और मुझसे नज़र मिलते हुए अपने मैले कुर्ते की जेब झड़का दी। ढाबे का मालिक मुस्कुरा रहा था। उसने सिक्के अपने हाथ में लिए और गल्ले में डाल दिए। बूढ़ा खिसियाई सी हंसी देकर उठ गया और लंगड़ाता हुआ वो फ्लाईओवर के नीचे पहुंच गया, इठलाता हुआ ढाबे का वो लड़का खाना सर्व करने लगा और मैं खुद पर शर्म करता हुआ अपनी स्कूटी पर आ बैठा।
आज के दिन ने बहुत अनुभव दिए हैं पर इसे साझा किये बिना रह नहीं सका।
माधव... :)
ReplyDeleteघर पहुंचने के बाद शुरू हुए भीतर के किस्से को भी लिख... :)
हां भाई लिखूंगा जरूर
Deletelgta h bude aadmi k liye ye ak khaas din thaa
ReplyDeleteपता नहीं
DeleteGhajab ka lekhan tha. Munshiji ki kahaniyo jesi feeling aa gai. Great... Sochata hu us bujurg ki haalat jab paise poore nahi the fir b khana khate waqt kesa feel ho raha tha. Soch raha hoga ki agar hotel se jane nahi dia to kya hoga, Shayad isilie darr se poora khana b naa khaya gya ho.
ReplyDeleteशुक्रिया,तारीफ अच्छी लगी पढ़कर पर मुंशी जी धूल भर भी अगर में लिख पाया तो खुद को खुशकिस्मत समझूंगा उस दिन।
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