केदारनाथ सिंह
वह जाते हुए आदमी की नंगी पीठ थी
जो धूप में चमक रही थी
जो धूप में चमक रही थी
एक कुत्ता जो उसे देखकर
बेतरह भूंक रहा था
मुझे सूंघता हुआ बस के अड्डे तक
मेरे साथ-साथ गया
बेतरह भूंक रहा था
मुझे सूंघता हुआ बस के अड्डे तक
मेरे साथ-साथ गया
और उसके बाद हम दोनों
इस बात पर सहमत हो गए
कि आदमी की नंगी पीठ
उसके चेहरे से ज़्यादा दिलचस्प होती है
ज़्यादा तर्कसंगत।
इस बात पर सहमत हो गए
कि आदमी की नंगी पीठ
उसके चेहरे से ज़्यादा दिलचस्प होती है
ज़्यादा तर्कसंगत।
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