Thursday 3 March 2016

प्रधानमंत्री जी के नाम एक हारे हुए नागरिक की चिठ्ठी


आदरणीय प्रधानमंत्री जी,
आप तकनीक का जमकर इस्तेमाल करते हैं इसलिए आप मुल्क में जो कुछ चल रहा है या चलाया जा रहा है उससे अवगत होंगे ही। राजनीति करते हैं इसलिए समाज में जो घट रहा है उसकी राजनीतिक और सामाजिक नजरिये से व्याख्या भी करते होंगे। खैर! मैं सीधे अपनी बात पर आता हूं जब से आप की सरकार आई है हमारे बहस करने के मुद्दे बदल (बदले जा) रहे हैं, हमारी जड़ें खोदी जा रही हैं ये देखने के लिए कि हम कौन हैं, क्या खाते हैं, कैसा पहनते हैं। ऐसा लगता है कि इस काम के लिए बाकायदा कुछ लोगों की भर्ती हुई है जो हर किसी को अपने हिसाब, अपने तरीकों से देख रहे हैं बिना ये समझे कि इस देश में हम कितने रंगों में बिखरे हुए हैं। जानबूझकर ऐसे मसले लाए जा रहे हैं जिनसे हमारे समाज को अब तक बाहर आ जाना चाहिए था और शायद हमारा समाज ऐसी कोशिश कर भी रहा है लेकिन आप की पार्टी समेत अन्य राजनीतिक लोग वापस समाज को उसी जगह लाकर खड़ा कर देना चाहते हैं जहां हम आजादी के वक़्त थे। हमें आज हमारे अवचेतन में बसी कहानियों को उदाहरण के तौर पर पेश करना पड़ रहा है। हर इंसान को खुद को साबित करना पड़ रहा है कि वो क्या है। हमारे लिए हर बात की नई परिभाषाएं गढ़ी जा रही हैं। लोगों का ध्रुवीकरण किया जा रहा है, अजीब सी गोलबंदी हो रही है, जीने के वो लोग नियम बना रहे हैं जो खुद विचारधाराओं के बिगड़े रूपों के गुलाम हैं। जब-जब देश में कुछ हमारी प्रकृति के खिलाफ हुआ है कुछ नायक निकले हैं लेकिन आज उन लोगों को राजनीतिक तरीके से मारा जा रहा है, ये हमारे कल के लिए कलंक साबित होंगे प्रधानमंत्री जी।

सुबह ही ‌फेसबुक पर देखा कि किसी शम्स तवरेज को आरटीआई पर यह कहकर जानकारी नहीं दी कि वो मुस्लिम है और मुस्लिम धर्म आतंकियों का धर्म है। मुझे नहीं पता ये सच है कि नहीं काश हो भी नहीं लेकिन अगर झूठ भी है तो ये कौन लोग हैं जो इस तरह की सूचनाएं फैलाकर नफरत फैला रहे हैं। ऐसी ही बातें हमें मरा और हारा हुआ समाज बना रही हैं। जयपुर के झालाना इलाके में अतिक्रमण है लोग खुद ही हटाने के लिए तैयार हैं लेकिन जयपुर विकास प्राधिकरण के अधिकारी नियमों का हवाला देकर अतिक्रमण नहीं हटा रहे। लोगों ने पीएमओ में शिकायत की, जवाब आया कि जेडीए उचित कार्रवाई करे फिर भी अधिकारी एक महीने से उस पर तामील नहीं कर रहे। अब सोचिए लोगों के दिमाग में सत्ता के बारे में क्या विचार बनेंगे जब आप ही की पार्टी की सरकार के अधिकारी आप ही की बात नहीं मानेंगे? क्या ये उदासीनता आपकी और सत्ता की समाज में हार नहीं है और क्या ये उस समाज की भी अपनी हार नहीं है जिसने आपको वहां अपना नेता बनाकर भेजा है?
आप देखिए कैसे हर मुद्दे पर तुरंत पार्टियां बन जाती हैं। 2 इधर से निकलते हैं तो 4 उधर से। फिर सब शांत हो जाता है लोग कुछ समझ पाते हैं उससे पहले फिर कुछ और आ जाता है। मुझ जैसा आम नागरिक ये नहीं समझ पा रहा कि आखिर वोट हमने क्यों दिया था? क्या ये देखने के लिए कि यहां रह रहे लोगों में कौन देशभक्त है और कौन देशद्रोही? क्या ये देखने के लिए कौन सहिष्णु है और कौन असहिष्णु? सर ये काम समाज अपने स्तर पर करता और देखता रहता है, 27 फरवरी की ही बात है, एक बुआ हैं हमारी कोई सगा भाई नहीं है उनका बेटे की शादी में भात भरना था, सबने अपनी हैसियत से दिया, मोहल्ले के कल्लू खां भी भात भरने गए और 500 रुपए देकर आए। सर! हमारी सहिष्णुता यही है अब इसे बताने के िलए ऐसे उदाहरण देने पड़ रहे हैं। थोड़ा इधर देख लीजिए सर, हरी मिर्ची 80 रूपए किलो है।
अब आपके समर्थक ये कहेंगे कि हम हर छोटी-छोटी बात में आपको क्यों बीच में लाते हैं तो सर 2014 के चुनावों को अभी मैं तो भूला नहीं हूं। आप जहां भी जाते थे कहते थे, मैं करूंगा। पूरा चुनाव आपने मैं कर के लड़ा था इसलिये ये समाज आज आप की और ही देख रहा है और देखना भी चाहिए।

खैर! मैं ये जानता हूं कि आपकी पार्टी या और पार्टी के लोगों को इससे सियासी फायदा मिलता है लेकिन एक समाज और नागरिक के तौर पर ये सारे मामले हमें कमजोर ही कर रहे हैं, हम लगातार हार रहे हैं सर! ये सियासी जीत (हार भी) आपको भले ही कुछ दिनों या सालों तक फायदा पहुंचाए लेकिन आप ये अच्छी तरह समझते होंगे कि एक नेता को लोग समाज किस लिए अपनी यादों में रखते हैं।
एक अच्छा समाज बनाने में जब इतिहास आपके योगदान को खोज रहा होगा तब  शायद इस हार की कीमत हमारी संतानें चुका रही होंगी। लिखने को और भी बहुत कुछ है लेकिन अंत में इतना ही कह पा रहा हूं कि ऐसी राजनीति हमें बिना सोच-समझ वाला एक पंगु और मुर्दा समाज बना रही है और जब ये समाज ही मुर्दा हो जाएगा तो कुछ सालों बाद ये आपकी राजनीति के काम का भी नहीं होगा प्रधानमंत्री जी इसीलिए ये एक हारे हुए नागरिक की आपसे गुजारिश है बंद करवा दीजिए ये सब।
आपका
एक हारा हुआ नागरिक

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