Wednesday 30 March 2016

कविता: बैठे-बैठे

कभी-कभी यूंही बैठे रहने को मन करता है
बैठे रहो, बैठे ही रहो घंटों तक चाय की प्याली लिए
बैटे-बैठे थक जाना और थक कर फिर बैठ जाना
और सोचना कि हम बैठे क्यों हैं
इस क्यों का जवाब ढूंढ़ना और बैठे-बैठे ये ख्याल आना कि ये तो सवाल ही गलत है
फिर एक प्याली चाय की और लेना और इसी तरह बैठ जाना...
कभी-कभी यूंही...

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