Friday 16 September 2016

#मानसून_डायरी (5)

हर किसी की अपनी दुनिया है। अपनी-अपनी उम्मीदें हैं, सपने हैं और उन्हें पूरा करने की अपनी-अपनी कोशिशें हैं फिर भी जिससे पूछो वो नाखुश है, मरी हुई सांसें लिए चलते-फिरते बदन हैं। एक अदद चैन की नींद के लिए तरसे हुए लोग हैं हम। लेकिन जब जिसके लिए भाग रहे हैं वो ऐसी शक्ल में दिख जाए तो लगता है उस भाग-दौड़ की छतरी बना, सपनों का तकिया और उनके लिए की जाने वाली कोशिशों को नींद में भरकर जी भर के सो लिया जाए। पास से बह रही नदी मानो गा रही हो जिसमें आसपास चर रही गायों के गले में बंधीं घंटियों का संगीत हो। 

 

बांसुरी सी बजती कीट-पतंगों की आवाज़ें हों। जब तलक सोने का मन हो सोया जाए। ना कोई जगाने वाला हो और ना ही कोई सपनों को पूरा करने के लिए थका देने वाली भीड़। बस एक छाता हो जिसमें उस भाग-दौड़ को भरा जा सके और आपको समेटने के लिए हरे घास का आंचल...

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