Friday 2 September 2016

#मानसून_डायरी (1)

 #मानसून_डायरी एक कोशिश है उन चीजों को नए सिरे से देखने की जिन्हें मैं बचपन से देख रहा हूं लेकिन अब सलीके से इन्हें देखने की नज़र पैदा कर सका हूं। पता नहीं कब तक जारी रख सकूंगा और क्या इन चीजों के बारे में लिख पाऊंगा लेकिन कोशिश कर के देखता हूं अगर बची रह गई तो हमारे बच्चे देख पाएंगे और नहीं बची तो कम से कम ये जैसा-तैसा लिखा हुआ ही पढ़ लेगें।
ये मेरे गांव का दीवान का ताल है जो अब खत्म होने की कगार पर है
#पानी
1. बीती गर्मियों में ही आया था यहां। सूखे से तड़पते लोगों को देखा। पोखर का हरा गंदीला पानी पीते हुए लोग। आज फिर आया हूं। ज्यादा पानी से परेशां लोग। सप्लाई में आता गन्दा पानी पीते हुए लोग।
लोग हैं लोगों का क्या!!!

2. वो सूखे का बदसूरत गर्मी से भड़कता हुआ डांग। ऊबड़-खाबड़ उदास जंगलों वाला डांग।  आज फिर आया हूं। दिख रहा है हरियाली से चमकता हुआ डांग। हरियाली से उस उदासी को छांटता हुआ डांग।
डांग है इस डांग का क्या!!!
3. यही सूखा हुआ तालाब था तब भी। कुम्हार अपने गधों पर मिट्टी खोदकर ले जा रहे थे। गहरे-गहरे गड्ढे खोदकर चले गए वो कुम्हार।
आज उसी गहराई को इस बुर्ज़ से कूदकर नापते हुए लोग। दूर किनारे पर खड़ा दिख रहा था एक गधा।
गधे हैं गधों का क्या!!!

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