Saturday 5 December 2015

कविता: सड़क 2



सड़क पर फिर किसी रोज वैसे ही चल रही थी गाड़ियां
पों-पूं धां-धूं, टी-टों

फिर वही सिग्नल, वही बड़ी-बड़ी गाड़ियां
वही पोहे वाला और सेडान और बिकने को खड़े प्रवासी

फिर आगे का सफर
मरम्मत के दम पर चलता फ्लाईओवर
पुल पर ही लम्बी लगी वाहनों की कतारें

राजस्थानी कलाकृतियों के अवशेषों से सजे
टूटे पुल पर रेंगती गाड़ियां
अपने आशिक को धूप से बचाती घूंघट में खड़ी औरत की कलाकृति
उसकी छांव तले चिथड़ों में लिपटी हुई पड़ी है कोई जिंदा लाश
उसके बगल से वैसे ही गुजर रही हैं गाड़ियां
पों-पूं धां-धूं, टी-टों.

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