Monday 7 December 2015

कविता: सड़क 3



सड़क पर शांति है आज
न पों-पूं, न धां-धूं और न ही टी-टों
न बड़ी-बड़ी गाड़ियां, न कोई पोहे वाला और न ही बिकने को खड़े प्रवासी

इतवार है इसलिए सब छुट्‌टी पर हैं शायद
पर इक्की-दुक्की मोटरसाइकल हैं, उन पे जा रहे कुछ कपल
ये जोड़े बैठे हैं ऐसे मानो सड़क की शांति को खुद में समा लेना चाहते हों
बिना फ़िक्र के कि हर चौराहे पर लगी हैं तीसरी आंख
जो घूरती है हर प्यार करने वाले को, कंट्रोल रूम में बैठे इंसानी चश्मे से

फिर भीवो जा रहे हैं एक-दूसरे में िलपटे सड़क की शांति को खुद में लिपटाते हुए
बेफ़िक्र, बेखौफ़ बस आवाज है पीछे छूटती हुई मोटरसाइकल की
न पों-पूं, न धां-धूं और न ही टी-टों

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