Saturday 12 December 2015

फोटो भी कभी ब्लॉग बनने चाहिए...

दिवाली

बतख भी उड़ती है

सब कुछ स्टील नहीं है

मैं देख रहा हूं कहीं गाय तो नहीं उड़ रही (जेकेके आर्ट गैलरी)


 हमारे छाते ही अलग होंगे बस हम नहीं...

नाचूं गुलाबो बन के

शहर में गांव का होना

शहर में गांव का होना 2
 
शहर में गांव का होना 3





हुक्का अब कटवारिया, बेर सराय का राष्ट्रीय पुरातन खेल है


चाक का शहर हो जाना


ये अद्भुत है

कबीरा जब मनाली गए

कबीरा जब मनाली गए 2

कबीरा जब मनाली गए 3

कबीरा जब मनाली गए 4

कबीरा जब मनाली गए 5

कबीरा जब मनाली गए 6

कबीरा जब मनाली गए 7


कबीरा मनाली से पहुंच गए अमृतसर

आगरा

साब! ये रात में हमारे लिए जागता है तो दिन में हम इसके लिए, दोनों ही सहिष्णु हैं

सड़क पर भगवान

सोनिया माईं की हथेली खत सी गई है

सरगासूली जब तिरंगा बन गया (जयपुर)

मेरे गांव में कबड्‌डी टूर्नामेंट

निश्छल जल...

गांव की शाम

गांव का मेला

दोस्ती हो तो ऐसी, सड़क पर हुई और खत्म भी सड़क पर होगी

ये अनुभव की लकीरें हैं....

साल 1948 का शादी कार्ड जो हाथ से पेंट किया है और अंदर दहेज न लेने की कसम भी है

जयपुर की शाम
नोट: किसी भी फोटो का इस्तेमाल बिना इजाज़त के न करें।

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